अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा

महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत 24वें अध्याय में अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा करने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

शकुनि का दुर्योधन के पास जाना

संजय कहते हैं- राजन! जब पाण्डव-योद्धाओं ने अधिकांश सेना का संहार का डाला और युद्ध का कोलाहल कम हो गया, तब सुबलपुत्र शकुनि शेष बचे हुए सात सौ घुड़सवारों के साथ कौरव सेना के समीप चला गया। वह तुरन्त कौरव सेना में पहुँचकर सब को युद्ध के लिये शीघ्रता करने की प्रेरणा देता हुआ बोला-शत्रुओं का दमन करने वाले वीरों! तुम हर्ष और उत्साह के साथ युद्ध करो! ऐसा कहकर उसने वहाँ बारम्बार क्षत्रियों से पूछा-महाबली राजा दुर्योधन कहाँ है? भरतश्रेष्ठ! शकुनि की वह बात सुनकर उन क्षत्रियों ने उसे यह उत्तर दिया-प्रभो! महाबली कुरुराज रणक्षेत्र के मध्यभाग में वहाँ खडे़ हैं, जहाँ यह पूर्ण चन्द्रमा के समान कांतिमान विशाल छत्र तना हुआ है तथा जहाँ वे शरीर-रक्षक आवरणों एवं कवचों से सुसज्ज्ति रथ खड़े हैं। राजन! जहाँ यह मेघों की गम्भीर गर्जना के समान भयानक शब्द गूँज रहा है, वहीं शीघ्रतापूर्वक चले जाइये, वहाँ आप कुरुराज का दर्शन कर सकेंगे। नरेश्वर! तब उन योद्धाओं के ऐसा कहने पर सुबलपुत्र शकुनि वहीं गया, जहाँ आपका पुत्र दुर्योधन समरांगण में विचित्र युद्ध करने वाले वीरों द्वारा सब ओर से घिरा हुआ खड़ा था।

शकुनि द्वारा कौरव सेना का हर्ष बढ़ाना

प्रजानाथ! तदनन्तर दुर्योधन को रथसेना में खड़ा देख आपके सम्पूर्ण रथियों का हर्ष बढ़ाता हुआ शकुनि अपने को कृतार्थ-सा मानकर बड़े हर्ष के साथ राजा दुर्योधन से इस प्रकार बोला- राजन! शत्रु की रथसेना का नाश कीजिये। समस्त घुड़सवारों को मैंने जीत लिया है। राजा युधिष्ठिर अपने प्राणों का परित्याग किये बिना जीते नहीं जा सकते। पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर के द्वारा सुरक्षित इस रथ-सेना का संहार हो जाने पर हम इन हाथीसवारों, पैदलों और घुड़सवारों का भी वध कर डालेंगे। विजयाभिलाषी शकुनि की यह बात सुनकर आपके सैनिक अत्यन्त प्रसन्न हो बड़े वेग से पाण्डव-सेना पर टूट पड़े। सबके तरकसों के मुँह खुल गये, सब ने हाथ में धनुष ले लिये और सभी धनुष हिलाते हुए जोर-जोर से सिंहनाद करने लगे। प्रजानाथ! तदनन्तर फिर प्रत्यंचा की टंकार और अच्छी तरह छोडे़ हुए बाणों की भयानक सनसनाहट प्रकट होने लगी।

अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा करना

उन सबको बड़े वेग से धनुष उठाये पास आया देखकर कुन्तीकुमार अर्जुन ने देवकीनन्दन भगवान श्रीकृष्ण से इस प्रकार कहा- जनार्दन! आप स्वस्थचित्त होकर इन घोड़ों को हाँकिये और इस सैन्यसागर में प्रेवश कीजिये। आज में तीखें बाणों से शत्रुओं का अन्त कर डालूँगा। परस्पर भिड़कर इस महान संग्राम के आरम्भ हुए आज अठारह दिन हो गये। इन महामनस्वी कौरवों के पास अपार सेना थी; परन्तु युद्ध में इस समय तक प्रायः नष्ट हो गयी। देखिये, प्रारब्ध का कैसा खेल है? माधव! अच्युत! दुर्योधन की समुद्र जैसी अनन्त सेना हम लोगों से टक्कर लेकर आज गाय की खुरी के समान हो गयी है। माधव! यदि भीष्म के मारे जाने पर दुर्योधन संधि कर लेता तो यहाँ सबका कल्याण होता; परन्तु उस अज्ञानी मूर्ख ने वैसा नहीं किया। मधुकुलभूषण! भीष्म जी ने जो सच्ची और हितकर बात बतायी थी, उसे भी उस बुद्धिहीन दुर्योधन ने नहीं माना। तदनन्तर घमासान युद्ध प्रारम्भ हुआ और उसमें भीष्म जी पृथ्वी पर मार गिराये गये। फिर भी न जोन क्या कारण था, जिससे युद्ध चालू ही रह गया।[1]

मैं धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को सर्वथा मूर्ख और नादान समझता हूँ, जिन्होंने शान्तनुनन्दन भीष्म जी के धराशायी होने पर भी पुनः युद्ध जारी रखा। तत्पश्चात् वेद वेत्ताओं में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य, राधापुत्र कर्ण और विकर्ण मारे गये तो भी मार-काट बंद नहीं हुई।। पुत्रसहित नरश्रेष्ठ सूतपुत्र के मार गिराये जाने पर जब कौरव सेना थोड़ी-सी ही बच रही थी तो भी यह युद्ध की आग नहीं बुझी। श्रुतायु, वीर जलसन्ध पौरव तथा राजा श्रुतायुध के मारे जाने पर भी यह संहार बंद नहीं हुआ। जर्नादन! भूरिश्रवा, शल्य, शाल्व तथा अवन्ति देश के वीर मारे गये तो भी यह युद्ध की ज्वाला शांत न हो सकी। जयद्रथ, बाह्लीक, सोमदत्त तथा राक्षस अलायुध -ये सभी परलोक वासी हो गये तो भी यह युद्ध की प्यास न बुझ सकी। भगदत्त, शूरवीर काम्बोजराज सुदक्षिण तथा अत्यन्त दारुण दुःशासन के मारे जाने पर भी कौरवों की युद्ध पिपासा शांत नहीं हुई।[2]

श्रीकृष्ण! विभिन्न मण्डलों के स्वामी शूरवीर बलवान नरेशों को रणभूमि में मारा गया देखकर भी यह युद्ध की आग बुझ न सकी। भीमसेन के द्वारा धराशायी किये गये अक्षौहिणी पतियों को देखकर भी मोहवश अथवा लोभ के कारण युद्ध बन्द न हो सका। राजा के कुल में उत्पन्न होकर विशेषत; कुरूकुल की संतान होकर दुर्योधन के सिवा दूसरा कौन ऐसा था, जो व्यर्थ ही (अपने बन्धुओं के साथ) महान वैर बाँधे। दूसरों को गुण से, बल से अथवा शौर्य से भी अपनी अपेक्षा महान जानकर भी अपने हित और अहित को समझने वाला मूढ़ताशून्य कौन ऐसा बुद्धिमान पुरुष होगा? जो उनके साथ युद्ध करेगा। आपके द्वारा हितकारक वचन कहे जाने पर भी जिसका पाण्डवों के साथ संधि करने का मन नहीं हुआ, वह दूसरे की बात कैसे सुन सकता है? जिसने संधि के विषय में वीर शान्तनुनन्दन भीष्म, द्रोणाचार्य और विदुर जी की भी बात मानने से इन्कार कर दी, उसके लिये अब कौन-सी दवा है? जर्नादन! जिसने मूर्खतावश अपने वृद्ध पिता की भी बात नहीं मानी और हित की बात बताने वाली अपने हितैषीणी माता का भी अपमान करके उनकी आज्ञा मानने से इन्कार कर दिया, उसे दूसरे किसी की बात क्यों रूचेगी? जर्नादन! निश्चय ही यह अपने कुल का विनाश करने वाला पैदा हुआ है। प्रजानाथ! इसकी नीति और चेष्टा ऐसी ही दिखायी देती है। अच्युत! मैं समझता हूँ, यह अब भी हमें अपना राज्य नहीं देगा।

तात! महात्मा विदुर ने मुझसे अनेक बार कहा है कि मानद! दुर्योधन जीते-जी राज्य का भाग नहीं लौटायेगा। दुर्बुद्धि दुर्योधन के प्राण जब तक शरीर में स्थित रहेंगे, तब तक तुम निष्पाप बन्धुओं पर भी वह पापपूर्ण बर्ताव ही करता रहेगा। माधव! युद्ध के सिवा और किसी उपाय से दुर्योधन को जीतना सम्भव नहीं है। यह बात सत्यदर्शी विदुर जी सदा से मुझे कहते आ रहे हैं। महात्मा विदुर ने जो बात कही है, उसके अनुसार में उस दुरात्मा के सम्पूर्ण निश्चय को आज जानता हूँ। जिस दुर्बुद्धि ने यमदग्निनन्दन परशुराम जी के मुख से यथार्थ एवं हितकारक वचन सुनकर भी उसकी अवहेलना कर दी, वह निश्चय ही विनाश के मुख में स्थित है। दुर्योधन के जन्म लेते ही सिद्ध पुरुषों ने बारंबार कहा था कि इस दुरात्मा को पाकर क्षत्रिय जाति का विनाश हो जायगा। जनार्दन! उसकी यह बात यथार्थ हो गयी; क्योंकि दुर्योधन के कारण बहुत-से राजा नष्ट हो गये। माधव! आज में रणभूमि में शत्रुपक्ष के समस्त योद्धाओं को मार गिराऊँगा। इस क्षत्रियों का शीघ्र ही संहार हो जाने पर जब सारा शिविर सूना हो जायगा, तब वह अपने वध के लिये हम लोगों के साथ जूझना पंसद करेगा। माधव! मेरे अनुमान से उसका वध होने पर ही इस वैर का अन्त होगा। वृष्णिनन्दन! मैं अपनी बुद्धि से, विदुर जी के वाक्य से और दुरात्मा दुर्योधन की चेष्टा भी सोच-विचारकर ऐसा ही होता देखता हूँ। अतः वीर! महाबाहो! आप कौरव-सेना की ओर चलिये, जिससे मैं पैने बाणों द्वारा युद्धस्थल में दुर्योधन और उनकी सेना का संहार करूँ। माधव! आज में दुर्योधन के देखते-देखते इस दुर्बल सेना का नाश करके धर्मराज का कल्याण करूँगा।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 24 श्लोक 1-22
  2. 2.0 2.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 24 श्लोक 23-50

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