अर्जुन का द्वारका एवं श्रीकृष्ण की पत्नियों की दशा देखकर दुखी होना

महाभारत मौसल पर्व के अंतर्गत पाँचवें अध्याय में वैशम्पायन जी ने दारुक का संदेश पाकर अर्जुन का द्वारका आने तथा द्वारका एवं श्रीकृष्ण की पत्नियों की दशा देखकर दुखी होने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

अर्जुन का द्वारका की दशा देखकर दुखी होना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! दारुक ने भी कुरुदेश में जाकर महारथी कुन्तीकुमारों का दर्शन किया और उन्हें यह बताया कि समस्त वृष्णिवंशी मौसल युद्ध में एक-दूसरे के द्वारा मार डाले गये। वृष्णि, भोज, अन्धक और कुकुर वंश के वीरों का विनाश हुआ सुनकर समस्त पाण्डव शोक से संतप्त हो उठे। वे मन-ही-मन संत्रस्त हो गये। तत्पश्चात् श्रीकृष्ण के प्रिय सखा अर्जुन अपने भाइयों से पूछकर मामा से मिलने के लिये चल दिये और बोले- ‘ऐसा नहीं हुआ होगा (समस्त यदुवंशियों का एक साथ विनाश असम्भव है)’। प्रभो! दारुक के साथ वृष्णियों के निवास स्थान पर पहुँचकर वीर अर्जुन ने देखा कि द्वारका नगरी विधवा स्त्री की भाँति श्रीहीन हो गयी है। पूर्वकाल में लोकनाथ श्रीकृष्ण के द्वारा सुरक्षित होने के कारण जो सबसे अधिक सनाथा थीं, वे ही भगवान श्रीकृष्ण की सोलह हज़ार अनाथा स्त्रियाँ अर्जुन को रक्षक के रूप में आया देख उच्च स्वर से करूण क्रन्दन करने लगीं। वहाँ पधारे हुए अर्जुन को देखते ही उन स्त्रियों का आर्तनाद बहुत बढ़ गया। उन सब पर दृष्टि पड़ते ही अर्जुन की आँखों में आँसू भर आये। पुत्रों और श्रीकृष्ण से हीन हुई उन अनाथ अबलाओं की ओर उनसे देखा नहीं गया।

द्वारका पुरी एक नदी के समान थी। वृष्णि और अन्धक वंश के लोग उस के भीतर जल के समान थे। घोड़े मछली के समान थे। रथ नाव का काम करते थे। वाद्यों की ध्वनि और रथ की घरघराहट मानो उस नदी के बहते हुए जल का कलकल नाद थी। लोगों के घर ही तीर्थ एवं बड़े-बड़े जलाशय थे। रत्‍नों की राशि ही वहाँ सेवारसमूह के समान शोभा पाती थी। वज्र नामक मणि की बनी हुई चहारदीवारी ही उसकी तटपंक्ति थी। सड़कें और गलियाँ उसमें जल के सोते और भँवरें थीं, चौराहे मानो उसके स्थिर जल वाले तालाब थे। बलराम और श्रीकृष्ण उसके भीतर दो बड़े-बड़े ग्राह थे। कालपाश ही उसमें मगर और घड़ियाल के समान था। ऐसी द्वारका रूपी नदी को बुद्धिमान अर्जुन ने वृष्णिवीरों से रहित हो जाने के कारण वैतरणी के समान भयानक देखा। वह शिशिर काल की कमलिनी के समान श्रीहीन तथा आनन्द शून्य जान पड़ती थी। वैसी द्वारका को और उन श्रीकृष्ण की पत्नियों को देखकर अर्जुन आँसू बहाते हुए फूट-फूटकर रोने लगे और मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। प्रजानाथ! तब सत्राजित की पुत्री सत्यभामा तथा रुक्मिणी आदि रानियाँ वहाँ दौड़ी आयीं और अर्जुन को घेरकर उच्च स्वर से विलाप करने लगीं। तदनन्तर अर्जुन को उठाकर उन्होंने सोने की चौकी पर बिठाया और उन महात्मा को घेरकर बिना कुछ बोले उनके पास बैठ गयीं। उस समय अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए उनकी कथा कही और उन रानियों को आश्वासन देकर वे अपने मामा से मिलने के लिये गये।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत मौसल पर्व अध्याय 5 श्लोक 1-15

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