अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार

महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत 25वें अध्याय में अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना के संहार का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

अर्जुन के भय से कौरव सेना का भागना

संजय कहते हैं- महाराज! यद्यपि कौरव योद्धा युद्ध से पीछे न हटने वाले शूरवीर थे और विजय के लिये पूरा प्रयत्न कर रहे थे तो भी उनके देखते-देखते अर्जुन ने गाण्डीव धनुष से उनके संकल्प को व्यर्थ कर दिया। जैसे बादल पानी की धारा गिराता है, उसी प्रकार वे बाणों की वर्षा करते दिखायी देते थे। उन बाणों का स्पर्श इन्द्र के वज्र की भाँति कठोर था। वे बाण असह्य एवं महान शक्तिशाली थे। भरतश्रेष्ठ! किरीटधारी अर्जुन की मार खाकर वह बची हुई सेना आपके पुत्र के देखते-देखते रणभूमि से भाग चली। कुछ लोग अपने पिता और भाईयों को छोड़कर भागे तो दूसरे लोग मित्रों को। कितने ही रथों के घोडे़ मारे गये थे और कितनों के सारथि। प्रजानाथ! किन्हीं के रथों के जूए, धुरे, पहिये और हरसे भी टूट गये थे, दूसरे योद्धाओं के बाण नष्ट हो गये और अन्य योद्धा अर्जुन के बाणों से पीड़ित हो गये। कुछ लोग घायल न होने पर भी भय से पीड़ित हो एक साथ ही भागने लगे और कुछ लोग अधिकांश बन्धु-बान्धवों के मारे जाने पर पुत्रों को साथ लेकर भागे। नरव्याघ्र! कोई पिता को पुकारते थे, कोई सहायकों को।

कौरव सेना का पुन: युद्ध के लिये उद्यत होना

प्रजानाथ! कुछ लोग अपने भाई बन्धुओं और सगे-सम्बन्धियों को जहाँ-के-तहाँ छोड़कर भाग गये। बहुत से महारथी पार्थ के बाणों से अत्यन्त घायल हो मूर्च्छित हो रहे थे। अर्जुन के बाणों से आहत हो कितने ही मनुष्य रणभूमि में ही पड़े-पड़े उच्छ्वास लेते दिखायी देते थे। उन्हें दूसरे लोग अपने रथ पर बिठाकर घड़ी-दो-घड़ी आश्वासन दे स्वयं भी विश्राम करके प्यास बुझाकर पुनः युद्ध के लिये जाते थे। रणभूमि में उन्मत्त होकर लड़ने वाले कितने ही युद्धाभिलाषी उन घायलों को वैसे ही छोड़कर आपके पुत्र की आज्ञा का पालन करते हुए पुनः युद्ध के लिये चल देते थे। भरतश्रेष्ठ! दूसरे लोग स्वयं पानी पीकर घोड़ों की भी थकावट दूर करते। उसके बाद कवच धारण करके लड़ने के लिये जाते थे। अन्य बहुत से सैनिक अपने घायल बन्धुओं, पुत्रों और पिताओं को आश्वासन दे उन्हें शिविर में रख आते। उसके बाद युद्ध में मन लगाते थे। प्रजानाथ! कुछ लोग अपने रथ को रणसामग्री से सुसज्जित करके पाण्डव-सेना पर चढ़ आते और अपनी प्रधानता के अनुसार किसी श्रेष्ठ वीर के साथ जूझना पंसद करते थे। वे शूरवीर कौरव-सैनिक रथ में लगे हुए किंकिणीसमूह से आच्छादित हो तीनों लोकों पर विजय पाने के लिये उद्यत हुए दैत्यों और दानवों के समान सुशोभित होते थे।

धृष्टद्युम्न द्वारा दुर्योधन की पराजय

कुछ लोग अपने सुवर्णभूषित रथों के द्वारा सहसा आकर पाण्डव सेनाओं में धृष्टद्युम्न के साथ युद्ध करने लगे। पांचालराजपुत्र धृष्टद्युम्न, महारथी शिखण्डी और नकुलपुत्र शतानीक-ये आपकी रथसेना के साथ युद्ध कर रहे थे। तदनन्तर आपके सैनिकों का वध करने के लिये उद्यत हो विशाल सेना से घिरे हुए धृष्टद्युम्न ने अत्यन्त क्रोधपूर्वक आक्रमण किया। नरेश्वर! भरतनन्दन! उस समय आपके पुत्र ने आक्रमण करने वाले धृष्टद्युम्न पर बहुत-से बाणसमूहों का प्रहार किया। राजन! आपके धनुर्धर पुत्र ने बहुत-से नाराच, अर्धनाराच, शीघ्रकारी वत्सदन्त और कारीगर द्वारा साफ किये हुए बाणों से धृष्टद्युम्न के चारों घोड़ों को मारकर उसकी दोनों भुजाओं और छाती में भी चोट पहुँचायी।[1] दुर्योधन के प्रहार से अत्यन्त घायल हुए महाधनुर्धर धृष्टद्युम्न अंकुश से पीड़ित हुए हाथी के समान कुपित हो उठे और उन्होंने अपने बाणों द्वारा उसके चारों घोड़ों को मौत के हवाले कर दिया तथा एक भल्ल से उसके सारथि का भी सर धड़ से काट दिया। इस प्रकार रथ के नष्ट हो जाने पर शत्रुदमन राजा दुर्योधन एक घोड़े की पीठ पर सवार हो वहाँ से कुछ दूर हट गया।[2]

अर्जुन और भीम द्वारा कौरव की गजसेना का संहार करना

महाराज! अपनी सेना का पराक्रम नष्ट हुआ देख आपका महाबली पुत्र दुर्योधन वहीं चला गया, जहाँ सुबलपुत्र शकुनि खड़ा था। रथसेना के भंग हो जाने पर तीन हजार विशालकाय गजराजों ने समस्त पाण्डव रथियों को चारों ओर से घेर लिया। भरतनन्दन! महाराज! समरांगण में गजसेना से घिरे हुए पाँचों पाण्डव मेघों से आवृत हुए पांच ग्रहों के समान शोभा पाते थे। राजेन्द्र! तब भगवान श्रीकृष्ण जिनके सारथि हैं, वे श्वेतवाहन महाबाहु अर्जुन अपने बाणों का लक्ष्य पाकर रथ के द्वारा आगे बढ़े। उन्हें चारों ओर से पर्वताकार हाथियों ने घेर रखा था। वे तीखी धारवाले निर्मल नाराचों द्वारा उस गजसेना के साथ युद्ध करने लगे। वहाँ हमने देखा कि सव्यसाची अर्जुन के एक ही बाण की चोट खाकर बड़े-बड़े़ हाथियों के शरीर विदीर्ण होकर गिर गये हैं और लगातार गिराये जा रहे हैं।

मतवाले हाथी के समान पराक्रमी बलवान भीमसेन उन गजराजों को आते देख तुरन्त ही रथ से कूदकर हाथ में विशाल गदा लिये दण्डधारी यमराज के समान उन पर टूट पड़े। पाण्डव महारथी भीमसेन को गदा उठाये देख आपके सैनिक भय से थर्रा उठे और मल-मूत्र करने लगे। भीमसेन के गदा हाथ में लेते ही सारी कौरव सेना उद्विग्न हो उठी। हमने देखा, भीमसेन की गदा से उन धूलिधूसर पर्वताकार हाथियों के कुम्भस्थल फट गये हैं और वे इधर-उधर भाग रहे हैं। भीमसेन की गदा से घायल हो वे हाथी भाग चले और आर्तनाद करके पंख कटे हुए पर्वतों के समान पृथ्वी पर गिर पड़े। कुम्भस्थल फट जाने के कारण इधर-उधर भागते और गिरते हुए बहुत-से हाथियों को देखकर आपके सैनिक संत्रस्त हो उठे।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 25 श्लोक 1-20
  2. 2.0 2.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 25 श्लोक 21-44

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