अरी माई साँवरौ सलौनौ अति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग काफी


(अरी माई) साँवरौ सलौनौ अति, नंद कौ कँवरै री।
चंदन की खौरि भाल, भौहै है जवरै री।।
कुंतल कुटिल छवि राजत झवरै री।
लोचन चपल तारे, रुचिर भँवरै री।।
मकरकुंडल गंड, झलमल करै री।
मनहुँ मुकुर बीच, रवि छवि बरै री।।
नासिका परम लोनी, बिंबाधर तरै री।
तहाँ धरी मुरली लौ, नाना रंग भरै री।।
जमुना कै तीर ग्वाल-संगहि बिहरै री।
अबही मैं देखि आई, बंसीबट तरै री।।
पिचकारी कर लिये, धाइ अंग धरै री।
नैननि अबीर मारै, काहू सौं न डरै री।।
बातनि हरत मन राग ह्वै कै ढरै री।
'सूरज' कौ प्रभु आली, चित तै न टरै री।।2886।।

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