अरी तू को है हौ हरि दूती -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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अरी तू को है हौ हरि दूती।
कहा कहति तजि मान मनोहर सुनि सखि समुझि कहा है सूती।।
ताहि मनाउ जगाइ जु तिनकौ अधर सुधा मधु मय संजूती।
'सूरदास' प्रभु रसिक सिरोमनि छल बल करि जु राधिका धूती।। 59 ।।

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