अरि, मेरे लालन की आजु बरष-गाँठि, सबै
सखिनि कौं बुलाइ मंगल-गान करावौ।
चंदन आंगन लिपाइ, मुतियनि चौकै पुराइ,
उमँगि अँगनि आनँद सो, तूर बजावौ।
मेरे कहैं बिप्रनि बुलाइ, एक सुभ घरी धराइ,
बागे चीरे बनाइ, भूषन पहिरावौ।
अछत-दूब दल बँधाइ, लालन की गँठि जुराइ,
इहै मोहिं लाहौ नैननि दिखरावौ।
पँचरंग सारी मँगाइ, बधू जननि पैहराइ,
नाचैं सब उमंगि अंग आनंद बढ़ावौ।
नंदरानी ग्वारनि बुलाइ, इहै रीति कहि सुनाइ,
बेगि करौ किन बिलंब काहैं लगावौ।
जसुमति तब नँद बुलावति, लाल लिए कनियाँ दिखरावति,
लगन घरी आवति, या तैं, न्हवाइ बनावौ।
सूर स्याम छबि निहारति, तन-मन जुवति जन वारति,
अतिहीं सुख धारति, बरष-गाँठि जुरावौ।।95।।