अब हरि हमकौ माई री मिलत नाहिंन नैकु।
नित उठि जाइ प्रात लै बन सँग, आगै पाछै डग नहिं एक।।
बाहाँ जोरी कुसुम चुनत दोउ, मेरे उर लगि इक दिन नख एक।
रसन दसन धरि भरि लिए लोचन, तोरन लइ सुघर बरषे एक।।
लावत हृदय खोंच पूरत पट, फुरुहुरी लत परिजन रेक।
अब को ऐसौ है ‘सूरज’ प्रभु, कौन अधिक जिहिं परिवेष।। 146 ।।