अब सिर परी ठगौरी देव -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री



            
अब सिर परी ठगौरी देव।
तातै विबस भयौं करुनामय, छाँड़ि तिहारी सेव।
माया-मंत्र पढ़त मन निसि-दिन मोह-मूरछा आनत।
ज्‍यौं मृग नाभि-कमल निज अनुदिन निकट रहत नहिं जानत।
भ्रम-मद-मत्त, काम-तृप्‍ना-रस-वेग, न क्रमै गह्यौ।
सूर एक पल गहरु न कीन्‍ह्यौ, किहिं जुग इतौ सह्यौ।।49।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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