अब राधा तू भई सयानी।
मेरी सीख मानि हिरदय धरि, जहँ-तहँ डोलति बुद्धि-अयानी।।
भई लाज की सामा तनु मैं, सुनि यह बात कुँवरि मुसुकानी।
हँसति कहा मैं कहति भली तोहिं, सुनति नहीं लोगनि की बानी।।
आजुहिं तैं कहुँ जान न दैहौं, मा तेरी कछु अकथ कहानी।
सूर स्याम कै संग न जैहौं, जा कारन तू मोहिं रिसानी।।1716।।