अब या तनहिं राखि कह कीजै।
सुनि री सखी स्याम सुंदर बिनु, बाँटि विषम विष पीजै।।
कै गिरिऐ गिरि चढ़ि सुनि सजनी, सीस संकरहि दीजै।
कै दहिऐ दारुन दावानल, जाइ जमुन धँसि लीजै।।
दुसह वियोग विरह माधौ के, को दिन ही दिन छीजै।
‘सूर’ स्याम प्रीतम बिनु राधे, सोचि सोचि कर मीजै।। 3362।।