अब मोहिं सरन राखियै नाथ।
कृपा करी जो गुरुजन पठए, कह्यौ जात गह्यौ हाथ।
अहंखाव तै तुम बिसराए, इतनेहिं छूट्यौ हाथ।
भवसागर मैं परयौ प्रक्ति-बस, बाँध्यौ फिरयौ अनाथ ?
स्नमित भयौ, जैसै मृग चितवत, देखि देखि भ्रम पाथ।
जनम न लख्यौ संत की संगति, कह्यौ-सुन्यौ गुन गाथ।
कर्म, धर्म तीरथ बिनु राधन, ह्वै गए सकल अकाथ।
अभय दान दै, अपनौ कर धरि सूरदास कै माथ।।208।।
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