अब मैं जानी देह बुढानी -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री



            

अब मैं जानी, देह बुढानी।
सीस पाउँ, कर कह्यौ न मानत, तन कौ दसा‍ सिरानी।
आन कहत, आनै कहि आवत, नैन नाक बहै पानी।
मिटि गइ चमक-दमक अँग-अँग की, मति अरु दृष्टि हिरानी।
नाहिं रही कछु सुधि तन-मन की, भई जु बात बिरानी।
सूरदास अब होत बिगूचनि, भजि लै सारँमपानी।।305।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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