अब मेरी को बोलै साखि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


अब मेरी को बोलै साखि।
कैसै हरि के संग सिधारै, अब लौ यह तन राखि।।
प्रान उदान फिर बन बीथिनि अवलोकनि अभिलाषि।
रूप रंग रस रासि परान्यौ, बचन न आवै भाषि।।
‘सूर’ सजीवन मूरि मुकंदहिं, लै आई ही आँखि।
अब सोइ अंजन देति सुरचि करि, जिहिं जीजै मुख चाखि।। 3336।।

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