अब नहिं बिसरूं म्‍हांरे हिरदे लिख्‍यो हरि नाम -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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परीक्षा



अब नहिं बिसरूँ, म्‍हाँरे हिरदे लिख्‍यो हरि नाम ।
म्‍हाँरे संतगुरु दियो बताय, अब नहिं बिसरूँ रे ।। टेक ।।
मीरा बैठी महल में रे, ऊठत बैठत राम ।
सेवा करस्‍याँ साध की, म्‍हाँरे और न दूजा काम ।
राणा जी बतलाइया, कह देणो जवाब ।
पण लागो हरिनाम सूँ, म्‍हाँरो दिन दिन दूनो लाभ ।
सीप भरयो पाणी पिवे रे, टाँक भरयो अत्र खाय ।
बतलायां बोली नद्दीं रे, राणोजी गया रिसाय ।
बिष रा प्‍याला राणाजी भेज्‍या, दीजो मेड़तणी के हाथ।
कर चरणामृत पी गई, म्‍हाँरा सबल धणी का साथ ।
बिष को प्‍यालो पी गई, भजन करे उस ठौर ।
थाँरा मारी ना मरूँ म्‍हाँरो राखणहारो और ।
राणोजी मोपर कोप्‍यो रे, मारूँ एक न सेल ।
मारयां पराछित लागसी, म्‍हाँने दीजो पीहर मेल ।
राणो मोपर कोप्‍यो रे, रती न राख्‍यो मोद ।
ले जाती बैकुंठ में, यो तो समझ्यो वहीं सिसोद ।
छापा तिलक बनाइया, तजिया सब सिंगार ।
म्‍हें तो सरणे रामके, भल निन्‍दो संसार ।
माला म्‍हांरे देवड़ी, सील बरत सिंगार ।
अबके किरपा कीजियो, हूँ तो फिर बांधू तलवार ।
रथां बैल जुताय कै, ऊटाँ कसियो भार ।
कैसे तोड़ूँ राम सूँ, म्‍हाँरो भोभो रो भरतार ।
राणो साँड्यो मोकल्‍यो, जाज्‍यो एके दौड़ ।
कुल की तारण अस्‍तरी, या तो मुरड़ चली राठौड़ ।
साँड्यो पाछो फेर्यो रे, परत न देस्‍याँ पाँव ।
कर सूरापण नीसरी, म्‍हांरे कुण राणे कुण राव ।
संसारी निन्‍दा करे, दुखियो सब संसार ।
कुल सारो ही लाजसी, मीरा थें जो भया जी ख्‍वार ।
राती माती प्रेम की, बिष भगत को मोड़ ।
राम अमल माती रहे, धन मीरा राठोड़ ।।47।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बिसरूँ = भूल सकती। हिरदे लिख्यो = हृदय को सदा के लिये प्रभावित कर चुका है। ऊठत... राम = उठते-बैठते सदा नाम स्मरण किया करती है। बतलाइया = पूछा है तो। कइदेणो = कर देना दे देना। पण = बाजी। सीप भर्यो = सितुही भर, केवल थोड़ा सा। टाँक भर्यो = प्रायः चार माशे की तौल में। बतलायाँ = पूछने पर। धणी = पति स्वामी। और = दूसरा कोई। मारूँ ... सेल = चाहा कि बरछी मार दूँ। पराछित = प्रायश्चित, पाप व कलंक। म्हाँने = मुझे। मेल = भेजना। रती = जरा भी। मोद = प्रसन्नता। यो तो = यह तो। सिसोद = सिसोदिया वंश के राणा ने। देवड़ी = भगवान् की। हूँ = मैं। फिर ... तलवार भी वा सदा तय्यार हूँ। ऊटाँ... भार = ऊंटों पर सामान लाद लिया। भो भो रो = जन्म जन्म का। साँड्यो मोकल्यो = साँडिये दौड़ाये। जाज्यो... दौड़ = एक ही दौड़ में पहुँच जाना। अस्तरी = स्त्री। या तो = वह तो। मुरड़ चली = लौट गई, रूठ कर चली गई। राठौड़ = माय के वाले राठौर वंशियों के यहाँ। परत... पाव = कभी पैर न रक्खूंगी। नीसरी = निकली हूँ। पण = प्रण, प्रतिज्ञा। म्हाँरे। मेरे लिये। ख्वार = खार, काँटा। बिष्.... मोड़ = भक्ति के मार्ग में आने वाली बाधाओं को कुंठित करके। धन = स्त्री वा धन्य।

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