अब कैसै पैयत सुख मांगे -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग




अब कैसै पैयत सुख माँगे।
जैसोइ बोइऐ तैसोइ लुनिऐ, कर्मन भोग अभागे।
तीरथ-ब्रत कछुवै नहिं कीन्‍हौ, दान दियौ नहिं जागे।
पछिले कर्म सम्‍हारत नाहीं, करत नहीं कछु आगे।
बोवत बबुर दाख फल चाहत, जोवत है फल लागे।
सूरदास तुम राम न भजि कै, फिरत काल सँग लागे।।61।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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