अब कीन्ह्यौ प्रभु मोहिं सनाथ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी



अब कीन्ह्यौ प्रभु मोहिं सनाथ।
कोटि-कोटि कोटिहु सम नाहीं, दरसन दियौ जगत के नाथ।
असरन सरन कहावत हौ तुम, कहत सुनी भक्तनि मुख बात।
ये अपराध छमा सब कीजै, धिक मेरी बुधि कहत डरात।
दीन बचन सुनि काली मुख तैं, चरन धरे फन-फन प्रति आप।
सूर स्याम देख्यौ अहि ब्याकुल, खसु दीन्ह्यौ, मेटे त्रय ताप।।559।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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