अब उन भाग्यवती गायों का -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव स्वरूप माधुरी

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राग भैरव - ताल कहरवा

गाय, बछड़े और साँड़

अब उन भाग्यवती गायों का, गोकुल का करिये शुभ ध्यान।
जिनकी अपने कर-कमलों से सेवा करते हैं भगवान॥
थकीं थनों के विपुल भार से मन्थरगति से जो चलतीं।
बचे तृणाङ्कुर दाँतों में न चबातीं, नहीं जरा हिलतीं॥
पूँछों को लटकाये देख रहीं श्रीहरि के मुख की ओर।
अपलक नेत्रों से घेरे श्रीहरि को वे आनन्द-विभोर॥
छोटे-छोटे बछड़े भी हैं घेरे श्रीहरि को सानन्द।
मुरलीसे अति मीठे स्वर में गान कर रहे हरि स्वच्छन्द॥
खड़े किये कानों से सुनते हैं वे परम मधुर वह गान।
भरा दूध मुँहमें, पर उसको वे हैं नहीं रहे कर पान॥
फेनयुक्त वह दूध बह रहा उनके मुखसे अपने-‌आप।
बड़े मनोहर दीख रहे हैं, हरते हैं मनका संताप॥
अतिशय चिकनी देह सुगन्धित-युत वह गो वत्सों का दल।
सुखदायक हो रहा सुशोभित जिनका भारी गलकबल॥
माधव के सब ओर उठाये पूँछ, नये श्रृङ्गोंसे युक्त।
करते हैं प्रहार आपस में कोमल मस्तक पर भययुक्त॥
लड़ने को वे भूमि खोदते नरम खुरों से बारंबार।
विविध भाँति के खेल कर रहे पुनः-पुनः करते हुंकार॥
जिनकी अति दारुण दहाड़ से क्षुब्ध दिशा‌एँ हो जातीं।
बृहत् ककुद से भारी जिनकी चलते देह रगड़ खातीं॥
दोनों कान उठाये सुनते मुरली का रव साँड़ विशाल।
महाभाग वे पशु, जो हरिका सङ्ग पा रहे हैं सब काल॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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