अपुने कौं कों न आदर देइ ?
ज्यौं बालक अपराध कोटि करै, मातु न मानै तेइ।
ते बेलो कैसैं दहियत हैं, जे अपनैं रस भेइ।
श्री संकर बहु रतन त्यागि कै, बिषहिं कंठ धरि लेइ।
माता-अछत छींर बिन सुत मरै, अजा-कंट-कुच सेइ।
जद्यपि सूरज महा पतित है, पतित-पावन तुम तेइ।।200।।
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