अपणे करम को वो छै दोस -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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धव-संवाद





अपणे करम को वो छै दोस, काकूँ दीजै रे ऊधो अपणे ।।टेक।।
सुणियो मेरी बगड़ पड़ोसण, गेले चलत लागी चोट।
पहली ग्यान मान नहिं कीन्हौं, मैं ममता की बाँधी पोट।
मैं जाण्यूँ हरि नाहिं तजेंगे, करम लिख्यो भलि पोच।
मीराँ के प्रभु हरि अविनासी, परो निवारो नी सोच ।।184।।[1]




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. करम को = भाग्य का। वो = वह। छे = है। काकूं = किसको, किसे। ऊधो = कृष्ण के प्रसिद्ध मित्र उद्धव जो उनका संदेश लेकर गोपियों के यहाँ गये थे। दीजै = दिया जाय। सुणियो = सुन कर जान लरे। बगड़ बगल वा आस पास में ही रहने वाली। गेले = रास्ते में। गेले... चोट = राह चलते चोट लगी। पहली... कीन्हौ = पहले वा आरम्भ में समझबूझ न सकी। ममता... पोट = आत्मीयता की गांठ जोड़ ली। पोट = गाँठ, गँठरी। जाण्यँ = जाना, समझा था। भलिपोच = भला बुरा। परो = पेर, दूर। निवारो नी = निवारण करो न। सोच = चिंता।

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