अतुल रूप-सौन्दर्य तुम्हारा -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

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राग बहार - ताल कहरवा


अतुल रूप-सौन्दर्य तुम्हारा, अनुपम सर्वविलक्षण रूप।
अतुल परम ऐश्वर्यरूप तुम, तत्त्व-महत्त्व असीम अनूप॥
नहीं प्राप्त करना कुछ तुमको, है कर्त्तव्य नहीं कुछ शेष।
निज महिमा में तृप्त सर्वदा, नहीं कहीं अतृप्ति लवलेश॥
जीव मात्र के तुम्हीं आत्मा, करते सब तुम में हैं प्रीति।
तुम्हीं सभी के एकमात्र हो, आश्रय, यही सनातन नीति॥
फिर तुम मुझ नगण्य दीना में, क्यों इतने रहते आसक्त?
क्यों निज महिमा भूल, बन रहे मुझ मलिना के इतने भक्त?
दोषमयी मैं नित्य, नहीं को‌ई भी, मुझमें गुण निर्दोष।
क्यों तुम रीझ रहे हो मुझपर, देख न पाते कुछ भी दोष?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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