अतुल त्यागसे उदित तुहारे -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग शिवरंजनी - ताल कहरवा


अतुल त्यागसे उदित तुहारे सहज प्रेमसे मैं भगवान।
रहता मिला सदा ही तुममें बाहर-भीतर सदा समान॥
भोग-जगत्‌से ऊपर उठकर तुमने मुझे ले लिया मोल।
प्रेम-सुधा-हित सदा तुहारे ललचाता मन, रहता लोल॥
इन्द्रिय-भोग-स्वर्ग-सुख-कामी, मोक्षाकांक्षी भी धीमान।
मुझे नहीं पा सकते वैसे, जैसे तुम पा चुकी अमान॥
मेरी श्रद्धा, सेवा, महिमाका रहस्य जो गोपन शुद्ध।
उसे यथार्थ जानती हो तुम जगत-वासना-शून्य विशुद्ध॥
मेरे सभी मनोरथ होते उदित यथार्थ तुम्हारे चित्त।
प्रिय अति मुझे इसीसे तुम त्यों, ज्यों प्रिय अति निर्धनके वित्त॥
कभी किया हो जिसने आनँदमयको यों आनन्दविभोर।
सदृश तुम्हारे तुहीं, जगत्‌में हु‌आ न को‌ई तुम-सा और॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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