अति रस लपट मेरे नैन -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


अति रस लपट मेरे नैन।
तृप्ति न मानत पिवत कमल मुख, सुदरता मधु ऐन।।
दिन अरु रैनि दृष्टि रसना रस, निमिष न मानत चैन।
सोभा सिधु समाइ कहाँ लौ, हृदय साँकरे ऐन।।
अब यह बिरह अजीरन ह्वै कै, बमि लाग्यौ दुख दैन।
‘सूर’ बैद ब्रजनाथ मधुपुरी, काहि पठाऊँ लैन।। 3239।।

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