अति आनंद ब्रजवासी लोग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


अति आनँद ब्रजवासी लोग।
भाँति-भाँति पकवान सकट भरि लै-लै चले छहूँ-रस भोग।।
तीनि लोक कौ ठाकुर संगहिं तासौं कहत सखा हम-जोग।
आवत जात डगर नहिं पावत, गोवर्धन-पूजा-संजोग।।
कोउ पहुँचे कोउ रेंगत मग मैं कोउ घर तैं निकसे, कोउ नाहिं।
कोउ पहुँचाइ सकट घर आवत, कोउ घर तैं भोजन ले जाहि।।
मारग मैं कोउ निर्तत आवत, कोउ गावत अपने रस माहिं।
सूर स्याम कौं जसुमति टेरति, बहुत भी है हरि न भुलाहिं।।827।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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