अतिहिं करत तुम स्याम अचगरी।
काहू की छीनत हौ इंडुरी, काहू की फोरत हौ गगरी।।
भरत देहु जमुना-जल हमकौं, दूरि करौ ये बातैं लँगरी।
पैंड़े चलन न पावै कोऊ, रोकि रहत लरिकनि लै डगरी।।
घाट-बाट सब देखति आवति, जुवती डरनि मरति हैं सगरी।
सूर स्याम तेहिं गारी दीजै, जो कोउ आवै तुम्हरी बगरी।।1415।।