अजहूँ माँगि लेहु दधि दैहैं।
दूध दही माखन जौ चाहौ, सहज खाहु सुख पैहैं।।
तुम दानी ह्वै आए हम पर, यह हमकौं नहिं भावै।
करौ तहीं लौं निबहै जोई, जातैं सब सुख पावै।।
हमकौं जान देहु दधि बेंचन, पुनि कोऊ नहिं लैहै।
गोरस लेत प्रातहीं सब कोउ, सूर धरयौ पुनि रैहै।।1509।।