अच्छे मीठे चाख चाख -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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शवरी





अच्छे मीठे चाख चास्व, बोर लाई भीलणी ।।टेक।।
ऐसी कहा अचारवती, रूप नहीं एक रती;
नीच कुल ओछी जात, अति ही कुचीलणी।
जूठे फल लीन्हें राम, प्रेम की प्रतीत जाण;
ऊँच नीच जाने नहीं, रस की रसीलणी।
ऐसी कहा वेद पढ़ी, छिन में विमाण चढ़ी;
हरि जी सूँ बांध्यो हेत, दास मीरां तरै जोइ;
पतित-पावन प्रभु, गोकुल अहीरणी ।।187।।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. चाख चाख = चख चख कर। बोर = बेर के फल। भीलणी = भील जाति की स्त्री, शवरी। अचारवती = आचार वती, आचार विचार से रहने वाली। एक रती = कुछ भी। कुचीलणी = मैले कुचैले वस्त्र वाली। झूठे = जूठे। प्रतीत जाण = विश्वास मानकर। जाने = माना, विचार किया। रस की रसीलणी = भक्ति वा प्रेम रस का आनन्द लेने वाली थी। छिन... चढ़ी = शीघ्र स्वर्ग को चली गई। हेत = संबंध। झूलणी = आनन्द करने वाली। जोई = जो कोई भी हो। गोकुल अहीरणी = गोकुल की ग्वालिन, पूर्व जन्म की गीपी, मीराँ (देखो- पद 19)

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