अक्रूर जी का भगवत्प्रेम 2

अक्रूर जी का भगवत्प्रेम

इस प्रकार भाँति-भाँति की कल्पनाएँ करते हुए वे वृन्दावन के समीप पहुँचे। वहाँ उन्होंने व्रज, अंकुश, यव, ध्वजा आदि चिह्नों से विभूषित श्यामसुन्दर के चरणचिह्नों को देखा। बस, फिर क्या था। वे उन घनश्याम के चरणों को देखते ही रथ से कूद पड़े और उनकी वन्दना करके उस धूलि में लोटने लगे। उन्हें उस धूलि में लोटने में कितना सुख मिल रहा था, यह कहने की बात नहीं है। जैसे-तैसे व्रज में पहुँचे। सर्वप्रथम बलदेवजी के साथ श्यामसुन्दर ही उन्हें मिले। उन्हें छाती से लगाया, घर ले गये, कुशल पूछी, आतिथ्य किया और सब हाल जाना।?

दूसरे दिन रथ पर चढ़कर अक्रूर के साथ श्यामसुन्दर और बलराम मथुरा चले। गोपियों ने उनका रथ घेर लिया, बड़ी कठिनता से आगे बढ़ सके। थोड़ी दूर चलकर यमुना किनारे अक्रूर जी नित्य-कर्म करने ठहरे। स्नान करने के लिये ज्यों-ही उन्होंने डुबकी लगायी कि भीतर चतुर्भुज श्रीश्यामसुन्दर दिखायी दिये। घबड़ाकर ऊपर आये तो दोनों भाइयों को रथ पर बैठे देखा। फिर डुबकी लगायी तो पुनः वही मूर्ति जल के भीतर दिखायी दी। अक्रूर जी को ज्ञान हो गया कि जल में, स्थल में, शून्य में कोई भी ऐसा स्थान नहीं जहाँ श्यामसुन्दर विराजमान न हों। भगवान उन्हें देखकर हँस पड़े। वे भी प्रणाम करके रथ पर बैठ गये। मथुरा पहुँचकर भगवान रथ से उतर पड़े और बोले-‘हम अकेले ही पैदल जायँगे।’ अक्रूर जी ने बहुत प्रार्थना की कि आप रथ पर पहले मेरे घर पधारें, तब कहीं अन्यत्र जायँ। भगवान ने कहा-‘आपके घर तो तभी जाऊँगा जब कंस का अन्त हो जायगा।’ अक्रूर जी दुःखी मन से चले गये।

कंस को मारकर भगवान अक्रूर जी के घर गये। अब अक्रूर जी के आनन्द का क्या ठिकाना! जिनके दर्शनों के लिये योगीजन हजारों-लाखों वर्ष तपस्या करते हैं, वे स्वतः ही बिना प्रयास के घर पर पधार गये। अक्रूर जी ने उनकी विधिवत पूजा की और कोई आज्ञा चाही। भगवान ने अक्रूर जी को अपना अन्तरंग सुहृद समझकर आज्ञा दी कि ‘हस्तिनापुर में जाकर हमारी बूआ के लड़के पाण्डवों का समाचार ले आओ। हमने सुना है, धृतराष्ट्र उन्हें दुःख देता है।’ भगवान की आज्ञा पाकर अक्रूर जी हस्तिनापुर गये और धृतराष्ट्र को सब प्रकार से समझाकर तथा पाण्डवों के समाचार लेकर लौट आये।

भगवान जब मथुरापुरी को त्यागकर द्वारका पधारे, तब अक्रूर जी भी उनके साथ ही गये। ये भगवान के प्रिय सखा और सच्चे भक्त थे। अन्त में भगवान के साथ-ही-साथ ये उनके धाम को पधारे।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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