अकेली भूलि परि बन माहिं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


अकेली भूलि परि बन माहिं।
कोऊ बाउ वही कतहुँ की, छूटि गई पिय-बाहिं।।
जहँ-जहँ जाऊँ तहाँ डर लागत, डगर बतावत नाहिं।
सूरदास-प्रभु तुम्हरे दरस बिनु, वेइ कदम वेइ छाहिं।।1104।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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