अकर्म (महाभारत संदर्भ)

  • मा ते संगोऽस्वकर्मणि।[1]

कर्म न करने में तेरी आसक्ति न हो।

  • न हि कश्चित् क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।[2]

कोई क्षण भर के लिये भी बिना कर्म किये नहीं रह सकता।

  • कर्म ज्यायो ह्मकर्मण:।[3]

कर्म न करने से कर्म करना अच्छा है।

  • शरीयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मण:।[4]

कर्म के बिना तो तुम्हारी आजीविका भी नहीं चलेगी।

अकर्मा (महाभारत संदर्भ)

अकर्मा = कर्म न करने वाला

  • निरीहो नाश्नुते महत्।[5]

निश्चेष्ट मनुष्य महत्त्वपूर्ण पद-प्रतिष्ठा नहीं पा सकता।

  • न पापीयऽस्त्यकर्मण:।[6]

कर्म न करने वाले से बड़ा पापी कोई नहीं है।

  • ग्रस्यतेऽकर्मशीलस्तु सदानर्थैरकिंचन।[7]

कर्म न करने वाला धन नहीं पाता और सदा विपत्ति में रहता है।

  • पुरुष इह न शक्त: कर्महीनो हि भोक्तुम्।[8]

संसार में कर्महीन कुछ नहीं भोग सकता।

  • अकृती लभते भ्रष्ट: क्षते क्षारावसेचनम्।[9]

कर्म न करने वाला घाव पर नमक लगाने के समान कष्ट पाता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भीष्मपर्व महाभारत 26.47
  2. भीष्मपर्व महाभारत 27.5
  3. भीष्मपर्व महाभारत 27.8
  4. भीष्मपर्व महाभारत 27.8
  5. उद्योगपर्व महाभारत 133.34
  6. शांतिपर्व महाभारत 75.29
  7. शांतिपर्व महाभारत 139.83
  8. अनुशासनपर्व महाभारत 6.45
  9. अनुशासनपर्व महाभारत 6.11

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