अंत के दिन कौं हैं घनस्‍याम -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग




अंत के दिन कौ हैं घनस्‍याम।
माता-पिता-वंधु-सुत तौ लगि, जौ लगि जिहिं कौ काम।
आमिष-रुधिर-अस्थि अँग जौलौं, तौलौं कोमल चाम।
तौ लगि यह संसार सगौ है जौ लगि लेहि न नाम।
इतनी जउ जानत मन मूरख, मानत याहीं धाम।
छाँड़ि न करत सूर सब भव-डर वृंदावन सौं ठाम।।76।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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