अंग श्रृंगार सुंदरि बनावै।
मिलौगी स्याम निजु करि धाम आजुही, रैनि बिलसौ काम मन मनावै।।
सरस सुमनाजात सीस कर सौं करति, सीमंत अलक पुनि पुनि सँवारै।
माँग सूधी पारि निरखि दरपन रहति, ग्रंथित कबीरीहिं पाटी निहारै।।
कमल, खंजन, मृगज, मीन लोचन जिते लेति, सारगसुत तहाँ आँजै।
हार उर धरति, नखसिखहु भूषन भरति, 'सूर' प्रभु मिलनसहित नारि राजै।।2706।।