हे राधे वृषभानुनन्दिनी, मम मन-नन्दिनि सुषमागार।
तेरी परम सुखद सुस्मृति ही है मेरी जीवन-आधार॥
कनक-गौर अनुपम वर तनपर नील वसन नव रहा विराज।
अंग-अंग अति मधुर मनोहर सजे सकल विधि सुन्दर साज॥
बदन-सरोज प्रफुल्ल, सौरभित, नव पीयूष मधुर मकरन्द।
रहते सदा अतृप्त पान-रत मधुलोभी मम नयन-मिलिन्द॥
रासेश्वरि, रस-रास-विलासिनि मन-मोहनि निर्मल सुख-सार।-तेरी०।
बिम्बाधर अति मधुर सुधा-रस-भरित, ललित शुचि गोल कपोल।
रत्नद्युति-भासित, श्रुति-रजन परम सुशोभित कुण्डल लोल॥
कुटिल नयन कज्जल-अनुरजित, अति विशाल, रसभरे ललाम।
बनकिम भ्रुकुटि पञ्चशर-शर-सी, सुघड़ नासिका शोभा-धाम॥
परमाह्लादिनि ह्लादिनि श्यामा प्रेम-सुधा-रस-उदधि अपार।-तेरी०।