हरि चरननि सुकदेव सिर नाइ -सूरदास

सूरसागर

अष्टम स्कन्ध

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राग विलावल



हरि हरि,हरि हरि, सुमिरन करौ। हरि चरनारविंद उर धरौ।
हरि चरननि सुकदेव सिर नाइ। राजा सौ बोल्यौ या भाइ।
कहौ हरि-कथा, सुनौ चित लाइ। सूर तरौ हरि के गुन गाइ।।1।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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