स्वामी आशुधीर वृन्दावन के पुलिन में निवास करने वाले प्रसिद्ध भक्त कवि थे। स्वामी हरिदास इनके शिष्य थे। आशुधीर जी के 52 शिष्य हुए, जिनमें स्वामी हरिदास सबसे प्रमुख थे, जिनसे अकबर के नवरत्नों में से एक तानसेन ने संगीत की कुशल शिक्षा प्राप्त की थी।
जन्म
वीतराग अनन्य भक्त स्वामी आशुधीर जी का जन्म विक्रम संवत 1480 (1423 ई.) के लगभग सारस्वत वंश में हुआ था। आप वृन्दावन के पुलिन में सदैव विश्राम किया करते थे, अत: उस स्थान का नाम भी 'धीर समीर' पड़ गया था। वह स्थान इतना दिव्य और पुनीत है कि उसके विषय में एक संस्कृत कवि ने तो यहाँ तक कह दिया कि-
"धीरसमीरे यमुनातीरे वसति सदा वनमाली।"
स्वामी हरिदास के गुरु
अकबर के दरबार के प्रसिद्ध गायक तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास तो आशुधीर जी के एक दोहे को सुनकर ही सर्वस्व त्यागकर उनके शिष्य हो गये और अन्त में भगवत्-सान्निध्य प्राप्त कर ही लिया। बात इस प्रकार थी कि युवावस्था में हरिदास जी एक श्रेष्ठ अश्व पर चढ़कर वृन्दावन में भ्रमण कर रहे थे। अश्व की टापों से वृन्दावन खुद रहा था, इसे देखकर भावुक भक्त का चित्त विचलित हो उठा और वे कह ही बैठे-
"नहिं पावत ब्रह्मादि सुर बिलसत जुगल सिहाय ।
अस कल कोमल भूमि पै तुरँग फिरावत हाय ।।"
दोहे को सुनते ही हरिदास जी की दिव्य दृष्टि हो गयी और वृन्दावन उन्हें दिव्य रत्नजटित दीखने लगा। तुरंत ही अश्व छोड़कर उन्होंने सदैव के लिये स्वामी आशुधीर जी के चरण पकड़ लिये और अन्त में युगल श्री कुंजविहारी का प्रत्यक्ष दर्शन किया।
किंवदंतियाँ
स्वामी आशुधीर जी के विषय में अनेक किंवदंतियाँ भी बहुत प्रसिद्ध हैं। प्रयाग में कुम्भ का पर्व था। वृन्दावन से बहुत-से महात्मा दर्शन-स्नान के लिये जा रहे थे। आशुधीर जी ने भी पाँच सुपारी एक साधु को देकर कह किया कि- "गंगा जी को दे देना"। साधु स्नान करके गंगा तट पर विचार करने लगे कि मुझे चढ़ाने को तो कहा नहीं है, देने को कहा है। वे तुरंत ही गंगा जी को पुकारने लगे। गंगा जी ने आवाज़ सुनकर जल से बाहर दक्षिण भुजा पसार दी और सुपारी लेकर अन्तर्धान हो गयीं।
- आशुधीर जी के विषय में किसी सामयिक कवि ने प्रशंसा में निम्न छन्द कहा था-
"निंबारक बंस अवतंस तामे हंसवत
अमित प्रसंस रति मति गति ग्राम हैं।
पंडित अखंडित हैं, बेदमति मंडित हैं,
राम सौं न काम किंतु धारी उर राम हैं ।।
तिलक बिसाल भाल, रसिक रसाल रस
परम कृपालु, पर औगुन कों खाम हैं।
ललित ललाम स्याम स्यामा सुखधाम नाम
लेत आठौं जाम आसुधीर अभिराम हैं।।
निकुंजवास
स्वामी आशुधीर जी का निकुंजवास लगभग 16वीं शताब्दी का उत्तरार्ध है। आज भी उनका स्थान 'टट्टीस्थान' के नाम से दर्शनीय तथा प्रसिद्ध है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- [लेखक. पं. श्री श्यामसुन्दर जी चतुर्वेदी शास्त्री, साहित्यरत्न]
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