स्मरण-मात्र से जिनके होता -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

बाल-माधुरी की झाँकियाँ

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राग शिवरञ्जनी - ताल कहरवा


स्मरण-मात्र से जिनके होता सूक्ष्म कामना का भी अन्त।
’पूर्णकाम’ वे ’स्तन्य-काम’ हो दौड़ पड़े ले क्षुधा अनन्त॥
’नित्यतृप्त’ जो रहते, जिनके ध्याता भी हो जाते तृप्त।
वे हरि मातृस्तन्य-हित समझ रहे अपने को ’नित्य अतृप्त’॥
’शुद्ध सत्त्व’ जो परमपुरुष हैं, जिनमें नहीं त्रिगुण-संश्लेष।
’क्रोध’ वरणकर होठ काटते वे, दिखता न क्षमा का लेश॥
जिनकी शुभ स्मृति ही हर लेती जनके क्रोध आदि सब दोष।
प्रकट कर रहे वे, हो काम-प्रतिहत दधि-भाजनपर रोष॥
’पूर्णैश्वर्ययुक्त’ जो नित स्वाराज्य-श्रीके परमाधार।
वही ’लोभ’वश ’चोरी’ करते, घुसकर माखन के भंडार॥
जिनके भय से यम-कुबेर-सब करते नियमित सारे काम।
छड़ी क्षुद्र वे देख जननि-कर बन जाते ’भय’रूप ललाम॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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