स्कन्द देव की रणयात्रा

महाभारत शल्य पर्व में गदा पर्व के अंतर्गत 46वें अध्याय में संजय ने स्कन्द देव की रणयात्रा का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

स्कंद को अस्त्र शस्त्रों की प्राप्ति

वैशम्पायन जी बोले- नृपश्रेष्ठ! तदनन्तर भगवान पाकशासन ने देवद्रोहियों के विनाश के लिये कुमार कार्तिकेय को शक्ति नामक अस्त्र प्रदान किया। साथ ही उन्होंने बड़े जोर से आवाज़ करने वाला एक विशाल घंटा भी दिया, जो अपनी उज्ज्वल प्रभा से प्रकाशित हो रहा था। भरतश्रेष्ठ! भगवान पशुपति ने उन्हें अरुण औरर सूर्य के समान प्रकाशमान एक पताका और अपने सम्पूर्ण भूतगणों की विशाल सेना भी प्रदान की। वह भयंकर सेना धनंजय नाम से विख्यात थी। उसमें सभी सैनिक नाना प्रकार के अस्त्र शस्त्र, तपस्या, बल और पराक्रम से सम्पन्न थे। रुद्र के समान बलशाली तीस हज़ार रुद्रगणों से युक्त वह सेना शत्रुओं के लिये अजेय थी। वह कभी भी युद्ध से पीछे हटना जानती ही नहीं थी। भगवान विष्णु ने कुमार को बल बढ़ाने वाली वैजयन्ती माला दी और उमा ने सूर्य के समान चमकीले दो निर्मल वस्त्र प्रदान किये। गंगा ने कुमार को प्रसन्नतापूर्वक एक दिव्य अैर उत्तम कमण्डलु दिया, जो अमृत प्रकट करने वाला था। बृहस्पति जी ने दण्ड प्रदान किया। गरुड़ ने विचित्र पंखों से सुशोभित अपना प्रिय पुत्र मयूर भेंट किया। अरुण ने लाल शिखा वाले अपने पुत्र ताम्रचूड (मुर्ग) को समर्पित किया, जिसका पैर ही आयुध था। राजा वरुण ने बल और वीर्य से सम्पन्न एक नाग भेंट किया और लोकस्रष्टा भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मणहितैषी कुमार को काला मृग चर्म तथा युद्ध में विजय का आशीर्वाद प्रदान किया।[1]

स्कंद का रण के लिए प्रस्थान

देवताओं का सेनापतित्व पाकर तेजस्वी स्कन्द अपने तेज से प्रज्वलित हो दूसरे अग्नि देव के समान सुशोभित होने लगे। तदनन्तर अपने पार्षदों तथा मातृकागणों के साथ कुमार कार्तिकेय ने देवेश्वरों को आनन्द प्रदान करते हुए दैत्यों के विनाश के लिये प्रस्थान किया।[1] नैर्ऋतों (भूतगणों) की वह भयंकर सेना घंटा, भेरी, शंख और मृदंग की ध्वनि से गूंज रही थी। उसकी ऊंचे उठी हुई पताकाएं फहरा रही थीं। अस्त्र-शस्त्रों और पताकाओं से सम्पन्न वह विशाल वाहिनी नक्षत्रों से सुशोभित शरद काल के आकाश की भाँति शोभा पा रही थी। तदनन्तर वे देवसमूह तथा नाना प्रकार के भूतगण शान्तचित्त हो भेरी, बहुत से शंख, पटह, झांझ, क्रकच, गोश्रृंग, आडम्बर, गोमुख और भारी आवाज करने वाले नगाड़े बजाने लगे। फिर इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवता कुमार की स्तुति करने लगे। देव-गन्धर्व गाने और अप्सराएं नाचने लगीं। इससे प्रसन्न होकर कुमार महासेन ने देवताओं को यह वर दिया कि ‘जो आप लोगों का वध करना चाहते हैं, आपके उन समस्त शत्रुओं का मैं समरांगण में संहार कर डालूंगा’। उन सुरश्रेष्ठ कुमार से वह वर पाकर महामनस्वी देवता बड़े प्रसन्न हुए और अपने शत्रुओं को मरा हुआ ही मानने लगे। महात्मा कुमार के वर देने पर सम्पूर्ण भूत-समुदायों ने जो हर्षनाद किया, वह तीनों लोकों में गूंज उठा। तत्पश्चात विशाल सेना से घिरे हुए स्वामी महासेन युद्ध में दैत्यों का वध और देवताओं की रक्षा करने के लिये आगे बढ़े। नरेश्वर! उस समय व्यवसाय (दृढ़ निश्चय), विजय, धर्म सिद्धि लक्ष्मी, धृति और स्मृति- ये सब के सब महासेन के सैनिकों के आगे-आगे चलने लगे। वह सेना बड़ी भयंकर थी। उसने हाथों में शूल, मुद्गर, जलते हुए काठ, गदा, मुसल, नाराच, शक्ति और तोमर धारण कर रखे थे। सारी सेना विचित्र आभूषणों और कवचों से सुसज्जित थी तथा दर्पयुक्त सिंह के समान दहाड़ रही थी, उस सेना के साथ सिंहनाद करके कुमार कार्तिकेय युद्ध के लिये प्रस्थित हुए। उन्हें देखकर सम्पूर्ण दैत्य, दानव और राक्षस भय से अद्विग्न हो सारी दिशाओं में सब ओर भाग गये।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 46 श्लोक 36-54
  2. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 46 श्लोक 55-75

सम्बंधित लेख

महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ


शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना | धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना | दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना | धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना | कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध | अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण | दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना | कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना | दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना | दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना | अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव | दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना | शल्य के वीरोचित उद्गार | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना | उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना | कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन | नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध | शल्य का पराक्रम | कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध | भीम के द्वारा शल्य की पराजय | भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध | दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध | दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध | युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध | मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध | अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध | दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध | शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध | पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध | भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय | युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय | भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध | सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय | मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन | पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा | भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार | दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना | धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध | सात्यकि द्वारा शाल्व का वध | सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय | दुर्योधन का पराक्रम | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम | कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध | उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम | शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय | अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा | अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार | अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार | अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज | सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध | भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध | अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध | भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त | सहदेव के द्वारा उलूक का वध | सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
ह्रदप्रवेश पर्व
बची हुई समस्त कौरव सेना का वध | संजय का क़ैद से छूटना | दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश | युयुत्सु का राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर में जाना
गदा पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा की सरोवर में दुर्योधन से बातचीत | युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर पर जाना | कृपाचार्य आदि का सरोवर से दूर हट जाना | युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण की बातचीत | सरोवर में छिपे दुर्योधन के साथ युधिष्ठिर का संवाद | युधिष्ठिर के कहने से दुर्योधन का सरोवर से बाहर आना | दुर्योधन का किसी एक पांडव से गदायुद्ध हेतु तैयार होना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को फटकारना | श्रीकृष्ण द्वारा भीमसेन की प्रशंसा | भीम और दुर्योधन में वाग्युद्ध | बलराम का आगमन और सम्मान | भीम और दुर्योधन के युद्ध का आरम्भ | बलदेव की तीर्थयात्रा | प्रभासक्षेत्र के प्रभाव तथा चंद्रमा के शापमोचन की कथा | उदपान तीर्थ की उत्पत्ति तथा त्रित मुनि के कूप में गिरने की कथा | त्रित मुनि का यज्ञ | त्रित मुनि का अपने भाइयों का शाप देना | वैशम्पायन द्वारा विभिन्न तीर्थों का वर्णन | नैमिषारण्य तीर्थ का वर्णन | बलराम का सप्त सारस्वत तीर्थ में प्रवेश | सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति | मंकणक मुनि का चरित्र | औशनस एवं कपालमोचन तीर्थ की माहात्म्य कथा | रुषंगु के आश्रम पृथूदक तीथ की महिमा | आर्ष्टिषेण एवं विश्वामित्र की तपस्या तथा वरप्राप्ति | अवाकीर्ण तीर्थ की महिमा और दाल्भ्य की कथा | यायात तीर्थ की महिमा और ययाति के यज्ञ का वर्णन | वसिष्ठापवाह तीर्थ की उत्पत्ति | ऋषियों के प्रयत्न से सरस्वती नदी के शाप की निवृत्ति | सरस्वती नदी के जल की शुद्धि | अरुणासंगम में स्नान से राक्षसों और इन्द्र का संकटमोचन | कुमार कार्तिकेय का प्राकट्य | कुमार कार्तिकेय के अभिषेक की तैयारी | स्कन्द का अभिषेक | स्कन्द के महापार्षदों के नाम, रूप आदि का वर्णन | स्कन्द की मातृकाओं का परिचय | स्कन्द देव की रणयात्रा | स्कन्द द्वारा तारकासुर, महिषासुर आदि दैत्यों का सेनासहित संहार | वरुण का अभिषेक | अग्नितीर्थ, ब्रह्मयोनि और कुबेरतीर्थ की उत्पत्ति का प्रसंग | श्रुतावती और अरुन्धती के तप की कथा | इन्द्रतीर्थ, रामतीर्थ, यमुनातीर्थ और आदित्यतीर्थ की महिमा | असित देवल तथा जैगीषव्य मुनि का चरित्र | दधीच ऋषि तथा सारस्वत मुनि के चरित्र का वर्णन | वृद्ध कन्या का चरित्र | वृद्ध कन्या का शृंगवान से विवाह तथा स्वर्गगमन | ऋषियों द्वारा कुरुक्षेत्र की सीमा और महिमा का वर्णन | प्लक्षप्रस्रवण आदि तीर्थों तथा सरस्वती की महिमा | बलराम का नारद से कौरवों के विनाश का समाचार सुनना | भीम-दुर्योधन का युद्ध देखने के लिए बलराम का जाना | बलराम की सलाह से सबका कुरुक्षेत्र के समन्तपंचक तीर्थ में जाना | समन्तपंचक तीर्थ में भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध की तैयारी | दुर्योधन के लिए अपशकुन | भीमसेन का उत्साह | भीम और दुर्योधन का वाग्युद्ध | भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध | कृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के संकेत से भीम द्वारा दुर्योधन की जाँघें तोड़ना | दुर्योधन के धराशायी होने पर भीषण उत्पात प्रकट होना | भीमसेन द्वारा दुर्योधन का तिरस्कार | युधिष्ठिर का भीम को अन्याय करने से रोकना | युधिष्ठिर का दुर्योधन को सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना | क्रोधित बलराम को कृष्ण का समझाना | युधिष्ठिर के साथ कृष्ण और भीम की बातचीत | पांडव सैनिकों द्वारा भीम की स्तुति | कृष्ण के आक्षेप पर दुर्योधन का उत्तर | कृष्ण द्वारा पांडवों का समाधान | पांडवों का कौरव शिबिर में पहुँचना | अर्जुन के रथ का दग्ध होना | पांडवों का कृष्ण को हस्तिनापुर भेजना | कृष्ण का हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी को आश्वासन देना | कृष्ण का पांडवों के पास लौटना | दुर्योधन का संजय के सम्मुख विलाप | दुर्योधन का वाहकों द्वारा अपने साथियों को संदेश भेजना | दुर्योधन को देखकर अश्वत्थामा का विषाद एवं प्रतिज्ञा करना | अश्वत्थामा का सेनापति पद पर अभिषेक

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः