स्कन्द के महापार्षदों के नाम, रूप आदि का वर्णन

महाभारत शल्य पर्व में गदा पर्व के अंतर्गत 45वें अध्याय में संजय ने स्कन्द के महापार्षदों के नाम, रूप आदि का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

स्कन्द के महापार्षदों के नामों का वर्णन

संजय कहते हैं- उस समय भगवान ब्रह्मा ने संतुष्ट होकर कार्तिकेय को वायु के समान वेगशाली, इच्छानुसार शक्तिधारी, बलवान और सिद्ध चार महान अनुचर प्रदान किये, जिनमें पहला नन्दिसेन, दूसरा लोहिताक्ष, तीसरा परमप्रिय घण्टाकर्ण और उनका चौथा अनुचर कुमुदमाली के नाम से विख्यात था। राजेन्द्र! फिर वहाँ महातेजस्वी भगवान शंकर ने स्कन्द को एक महान असुर समर्पित किया, जो सैकड़ों मायाओं को धारण करने वाला, इच्छानुसार बल पराक्रम से सम्पन्न तथा दैत्यों का संहार करने में समर्थ था। उसने देवासुर संग्राम में अत्यन्त कुपित होकर भयानक कर्म करने वाले चौदह प्रयुत (एक प्रयुत दस लाख के बराबर होता है।) दैत्यों का केवल अपनी दोनों भुजाओं से वध कर डाला था।[1] इसी प्रकार देवताओं ने उन्हें देव-शत्रुओं का विनाश करने वाली, अजेय एवं विष्णुरूपणी सेना प्रदान की, जो नैर्ऋतों से भरी हुई थी। उस समय इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवताओं, गन्धर्वों, यक्षों, राक्षसों, मुनियों तथा पितरों ने जय-जयकार किया। तत्पश्चात यमराज ने उन्हें दो अनुचर प्रदान किये, जिनके नाम थे- उन्माथ और प्रमाथ। वे दोनों काल के समान महापराक्रमी और महातेजस्वी थे। सुभ्राज और भास्वर जो सूर्य के अनुचर थे, उन्हें प्रतापी सूर्य ने प्रसन्न होकर कार्तिकेय की सेवा में दे दिया। चन्द्रमा ने भी कैलास शिखर के समान श्वेतवर्ण वाले तथा श्वेत माला और श्वेत चन्दन धारण करने वाले दो अनुचर प्रदान किये, जिनके नाम थे- मणि और सुमणि

अग्नि देव ने भी अपने पुत्र स्कन्द को ज्वालाजिह तथा ज्योति नामक दो शूर सेवक प्रदान किये, जो शत्रु सेना को मथ डालने वाले थे। अंश ने भी बुद्धिमान स्कन्द को पांच अनुचर प्रदान किये, जिनके नाम इस प्रकार हैं- परिघ, वट, महाबली भीम तथा दहति और दहन। इनमें से दहति और दहन बड़े प्रचण्ड तथा बल पराक्रम की दृष्टि से सम्मानित थे। शत्रुवीरों का संहार करने वाले इन्द्र ने अग्निकुमार स्कन्द को उत्क्रोश और पंचक नामक दो अनुचर प्रदान किये। वे दोनों क्रमशः वज्र और दण्ड धारण करने वाले थे। उन दोनों ने समरांगण में इन्द्र के बहुत से शत्रुओं का संहार कर डाला था। महायशस्वी भगवान विष्णु ने स्कन्द को चक्र, विक्रम और महाबली संक्रम -ये तीन अनुचर दिये। सम्पूर्ण विद्याओं में प्रवीण चिकित्सक चूड़ामणि अश्विनी कुमारों ने प्रसन्न होकर स्कन्द को वर्धन और नन्दन नामक दो सेवक दिये। महायशस्वी धाता ने महात्मा स्कन्द को कुन्द, कुसुम, कुमुद, डम्बर अैर आडम्बर- ये पांच सेवक प्रदान किये। प्रजापति त्वष्टा ने बलवान, बलोन्मत्त, महामायावी और मेघचक्रधारी चक्र और अनुचक्र नामक दो अनुचर स्कन्द की सेवा में उपस्थित किये। भगवान मित्र ने महात्मा कुमार को सुव्रत और सत्यसंध नामक दो सेवक प्रदान किये। वे दोनों ही तप और विद्या धारण करने वाले तथा महामनस्वी थे। इतना ही नहीं, वे देखने में बड़े ही सुन्दर, वर देने में समर्थ तथा तीनों लोकों में विख्यात थे। विधाता ने कार्तिकेय को महामना सुव्रत और सुकर्मा- ये दो लोक-विख्यात सेवक प्रदान किये।

भरतनन्दन! पूषा ने कार्तिकेय को पाणीतक और कालिक नामक दो पार्षद प्रदान किये। वे दोनों ही बड़े भारी मायावी थे। भरतश्रेष्ठ! वायु देवता ने कृत्तिका कुमार को महान बलशाली एवं विशाल मुख वाले बल और अतिबल नामक दो सेवक प्रदान किये। सत्यप्रतिज्ञ वरुण ने कृत्तिका नन्दन स्कन्द को यम और अतियम नामक दो महाबली पार्षद दिये, जिनके मुख तिमि नामक महामत्स्य के समान थे। राजन! हिमवान ने अग्निकुमार को महामना सुवर्चा और अतिवर्चा नामक दो पार्षद प्रदान किये। भारत! मेरु ने अग्नि पुत्र स्कन्द को महामना कान्चन और मेघमाली नामक दो अनुचर अर्पित किये। महामना मेरु ने ही अग्नि पुत्र कार्तिकेय को स्थिर और अतिस्थिर नामक दो पार्षद और दिये। वे दोनों महान बल और पराक्रम से सम्पन्न थे। विन्ध्य पर्वत ने भी अग्नि कुमार को दो पार्षद प्रदान किये, जिनके नाम थे- उच्छृंग और अतिश्रृंग। वे दोनों ही बड़े-बड़े पत्थरों की चट्टानों द्वारा युद्ध करने में कुशल थे।[2] समुद्र ने भी अग्नि पुत्र को दो गदाधारी महापार्षद दिये, जिनके नाम थे- संग्रह और विग्रह। शुभदर्शना पार्वती देवी ने अग्नि पुत्र को तीन पार्षद दिये- उन्माद, शंकुकर्ण तथा पुष्पदन्त। पुरुषसिंह! नागराज वासुकि ने अग्नि कुमार को पार्षद रूप से जय और महाजय नामक दो नाग भेंट किये। इस प्रकार साध्य, रुद्र, वसु, पितृगण, समुद्र, सरिताओं और महाबली पर्वतों ने उन्हें विभिन्न सेनापति अर्पित किये, जो शूल, पट्टिश और नाना प्रकार के दिव्य आयुध धारण किये हुए थे। वे सब के सब भाँति-भाँति की वेश-भूषा से विभूषित थे। स्कन्द के जो नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न और विचित्र आभूषणों से विभूषित अन्य सैनिक थे, उनके नाम सुनो।

शंकुकर्ण, निकुम्भ, पद्म, कुमुद, अनन्त, द्वादशभुज, कृष्ण, उपकृष्ण, घ्राणश्रवा, कपिस्कन्ध, काञ्चनाक्ष, जलन्धम, अक्ष, संतर्जन, कुनदीक, तमोऽन्तकृत, एकाक्ष, द्वादशाक्ष, एकजट, प्रभु, सहस्रबाहु, विकट, व्याघ्राक्ष, क्षितिकम्पन, पुण्यनामा, सुनामा, सुचक्र, प्रियदर्शन, परिश्रुत, कोकनद, प्रियमाल्यानुलेपन, अजोदर, गजशिरा, स्कंधाक्ष, शतलोचन, ज्वालाजिह, करालाक्ष, शितिकेश, जटी, हरि, कृष्णकेश, जटाधर, चतुर्देष्ट्र, अष्टजिह्व, मेघनाद, पृथुश्रवा, विद्युताक्ष, धनुर्वक्त्र, जाठर, मारुताशन, उदाराक्ष, रथाक्ष, वज्रनाभ, वसुप्रभ, समुद्रवेग, शैलकम्पी, वृष, मेष, प्रवाह, नंद, उपनन्द, धूम्र, श्वेत, कलिंग, सिद्धार्थ, प्रियक, प्रतापी गोनन्द, आनन्द, प्रमोद, स्वस्तिक, ध्रुवक, क्षेमवाह, सुवाह, सिद्धपात्र, गोव्रज, कनकापीड, महापरिषदेश्वर, गायन, हसन, बाण, पराक्रमी खंग, वैताली, गतिताली, कथक, वातिक, हंसज, पंकदिग्धांग, समुद्रोन्मादन, रणोत्कट, प्रहास, श्वेतसिद्ध, नन्दन, कालकण्ठ, प्रभास, कुम्भाण्डकोदर, कालकक्ष, सित, भूतमथन, यक्षवाह, सुवाह, देवयाजी, सोमप, मज्जान, महातेजा, क्रथ, क्राथ, तुहर, तुहार, पराक्रमी चित्रदेव, मधुर, सुप्रसाद, किरीटी, महाबल, वत्सल, मधुवर्ण, कलशोदर, धर्मद, मन्मथकर, शक्तिशाली सूचीवक्त्र, श्वेतवक्त्र, सुवक्त्र, चारुवक्त्र, पाण्डुर, दण्डबाहु, सुबाहु, रज, कोकिलक, अचल, कनकाक्ष, बालस्वामी, संचारक, गृध्नपत्र, जम्बुक, लोहवक्त्र , अजवक्त्र, जघन, कुम्भवक्त्र, कुम्भक, स्वर्णग्रीव, कृष्णौजा, हंसवक्त्र, चन्द्रभ, पाणिकूर्च, शम्बूक, पञ्चवक्त्र, शिक्षक, चापवक्त्र, जम्बूक, शाकवक्त्र और कुञ्चल। जनमेजय! ये सब पार्षद योगयुक्त, महामना तथा निरन्तर ब्राह्मणों से प्रेम रखने वाले हैं। इनके सिवा, पितामह ब्रह्मा जी के दिये हुए जो महामना महापार्षद हैं, वे तथा दूसरे बालक, तरुण एवं वृद्ध सहस्रों पार्षद कुमार की सेवा में उपस्थित हुए।[3]

स्कन्द के महापार्षदों के वेशभूषा व रूप का वर्णन

जनमेजय! उन सबके नाना प्रकार के मुख थे। किनके कैसे मुख थे? यह बताता हूं, सुनो। कुछ पार्षदों के मुख कछुओं और मुर्गों के समान थे, कितनों के मुख खरगोश, उल्लू, गदहा, ऊंट और सूअर के समान थे। भारत! बहुतों के मुख बिल्ली और खरगोश के समान थे। किन्हीं के मुख बहुत बड़े थे और किन्हीं के नेवले, उल्लू, कौए, चूहे, बभ्रु तथा मयूर के मुखों के समान थे। किन्हीं-किन्हीं के मुख मछली, मेढे, बकरी, भेड़, भैंसे, रीछ, व्याघ्र, भेड़िये तथा सिंहों के समान थे। किन्ही के मुख हाथी के समान थे, इसलिये वे बड़े भयानक जान पड़ते थे। कुछ पार्षदों के मुख मगर, गरुड़, कंक, भेड़ियों और कौओं के समान जान पड़ते थे। भारत! कुछ पार्षद गाय, गदहा, ऊंट और वनबिलाव के समान मुख धारण करते थे। किन्हीं के पेट, पैर और दूसरे-दूसरे अंग भी विशाल थे। उनकी आंखें तारों के समान चमकती थीं। कुछ पार्षदों के मुख कबूतर, बैल, कोयल, बाज और तीतरों के समान थे।[3] किन्हीं-किन्हीं के मुख गिरगिट के समान जान पड़ते थे। कुछ बहुत ही श्वेत वस्त्र धारण करते थे। किन्हीं के मुख सर्पों के समान थे तो किन्हीं के शूल के समान। किन्हीं के मुख से अत्यन्त क्रोध टपकता था और किन्हीं के मुख पर सौम्यभाव छा रहा था। कुछ विषधर सर्पों के समान जान पड़ते थे। कोई चीर धारण करते थे और किन्हीं-किन्हीं के मुख गाय के नथुनों के समान प्रतीत होते थे। किन्हीं के पेट बहुत मोटे थे और किन्हीं के अत्यन्त कृश। कोई शरीर से बहुत दुबले-पतले थे तो कोई महास्थूलकाय दिखायी देते थे। किन्हीं की गर्दन छोटी और कान बड़े-बड़े थे। नाना प्रकार के सर्पों को उन्होंने आभूषण के रूप में धारण कर रखा था। कोई अपने शरीर में हाथी की खाल लपेटे हुए थे तो कोई काला मृगछाला धारण करते थे। महाराज! किन्हीं के मुख कंधों पर थे तो किन्हीं के पेट में। कोई पीठ में, कोई दाढ़ी में और कोई जांघों में ही मुख धारण करते थे। बहुत से ऐसे भी थे, जिनके मुख पार्श्व भाग में स्थित थे।

शरीर के विभिन्न प्रदेशों में मुख धारण करने वाले पार्षदों की संख्या भी कम नहीं थी। भिन्न-भिन्न गणों के अधिपति कीट पतंगोें के समान मुख धारण करत थे। किन्हीं के अनेक और सर्पाकार मुख थे। किन्हीं-किन्हीं के बहुत सी भुजाएं और गर्दनें थे। किन्हीं की बहुसंख्यक भुजाएं नाना प्रकार के वृक्षों के समान जान पड़ती थी। किन्हीं-किन्हीं के मस्तक उन के कटि-प्रदेश में ही दिखायी देते थे। किन्हीं के सर्पाकार मुख थे। कोई नाना प्रकार के गुल्मों और लताओं से अपने को आच्छादित किये हुए थे। कोई चीर वस्त्र में ही अपने को ढके हुए थे और कोई नाना प्रकार के सुनहरे वस्त्र धारण करते थे। वे नाना प्रकार के वेश, भाँति-भाँति की माला और चन्दन तथा अनेक प्रकार के वस्त्र धारण करते थे। कोई-कोई चमड़े का ही वस्त्र पहनते थे। किन्हीं के मस्तक पर पगड़ी थी तो किन्हीं के सिर पर मुकुट शोभा पाते थे। किन्हीं की गर्दन और अंगकान्ति बड़ी ही सुन्दर थी। कोई किरीट धारण करते और कोई सिर पर पांच शिखाएं रखते थे। किन्हीं के सिर के बाल सुनहरे रंग के थे। कोई दो, कोई तीन और कोई सात शिखाएं रखते थे। कोई माथे पर मोर पंख और कोई मुकुट धारण करते थे। कोई मूंड़, मुड़ाये और कोई जटा बढ़ाये हुए थे। कोई विचित्र माला धारण किये हुए थे और किन्हीं के मुख पर बहुत से रोयें जमे हुए थे। उन सबको लड़ाई-झगड़े में ही रस आता था। वे सदा श्रेष्ठ देवताओं के लिये भी अजेय थे। कोई काले थे, किन्हीं के मुख पर मांस रहित हड्डियों का ढांचा मात्र था। किन्हीं की पीठ बहुत बड़ी थी और पेट भीतर को धंसा हुआ था। किन्हीं की पीठ मोटी और किन्हीं की छोटी थी। किन्हीं के पेट और मूत्रेन्द्रिय दोनों बड़े थे। किन्हीं की भुजाएं विशाल थी तो किन्हीं की बहुत छोटी। कोई छोटे-छोटे अंगों वाले और बौने थे। कोई कुबड़े थे तो किन्हीं-किन्हीं की जांघें बहुत छोटी थी। कोई हाथी के समान कान और गर्दन धारण करते थे।[4]

किन्हीं की नाक हाथी- जैसी, किन्हीं की कछुओं के समान और किन्हीं की भेड़ियों जैसी थी। कोई लंबी सांस लेते थे। किन्हीं की जांघें बहुत बड़ी थी। किन्हीं का मुख नीचे की ओर था और वे विकराल दिखायी देते थे। किन्हीं की दाढ़ें बड़ी, किन्हीं की छोटी और किन्हीं की चार थी। राजन! दूसरे भी सहस्रों पार्षद गजराज के समान विशालकाय एवं भयंकर थे। उनके शरीर के सभी अंग सुन्दर विभागपूर्वक देखे जाते थे। वे दीप्तिमान तथा वस्त्राभूषणों से विभूषित थे। भारत! उनके नेत्र पिंगलवर्ण के थे, कान शंकु के समान जान पड़ते थे और नासिका लाल रंग की थी। किन्हीं की दाढ़ें बड़ी और किन्हीं की मोटी थीं। किन्हीं के ओठ मोटे और सिर के बाल नीले थे। किन्हीं के पैर, ओठ, दाढ़ें, हाथ और गर्दनें नाना प्रकार की और अनेक थीं। भारत! कुछ लोग नाना प्रकार के चर्ममय वस्त्रों से आच्छादित, नाना प्रकार की भाषाएं बोलने वाले, देश की सभी भाषाओं में कुशल एवं परस्पर बातचीत करने में समर्थ थे। वे महापार्षदगण हर्ष में भरकर चारों ओर से दौड़े चले आ रहे थे। उनकी ग्रीवा, मस्तक, हाथ, पैर और नख सभी बड़े-बड़े थे। भ्रतनन्दन! उनकी आंखें भूरी थी, कण्ठ में नीले रंग का चिह्न था और कान लंबे-लंबे थे। किन्हीं का रंग भेड़ियों के उदर के समान था तो कोई काजल के समान काले थे। किन्हीं की आंखें सफ़ेद और गर्दन लाल थी। कुछ लोगों के नेत्र पिंगल वर्ण के थे।

भरतवंशी नरेश! बहुत से पार्षद विचित्र वर्ण वाले और चितकबरे थे। कितने ही पार्षदों के शरीर का रंग चंवर तथा फूलों के मुकुट सा सफ़ेद था। कुछ लोगों के अंगों में श्वेत और लाल रंगों की पंक्तियां दिखायी देती थी। कुछ पार्षद एक दूसरे से भिन्न रंग के थे और बहुत से समान रंग वाले भी थे। किन्हीं-किन्हीं की कान्ति मोरों के समान थी। अब शेष पार्षदों ने जिन आयुधों को ग्रहण किया था, उनके नाम बता रहा हूं, सुना। कुछ पार्षद हाथों में पाश लिये हुए थे, कोई मुंह बाये खड़े थे, किन्हीं के मुख गदहों के समान थे, कितनों की आंखें पृष्ठभाग में थी और कितनों के कण्ठों में नील रंग का चिह्न था। बहुत से पार्षदों की भुजाएं ही परिघ के समान थीं। भरतनन्दन! किन्हीं के हाथों में शतघ्नी थी तो किन्हीं के चक्र। कोई हाथ में मुसल लिये हुए थे तो कोई तलवार, मुद्गर और डंडे लेकर खड़े थे। किन्हीं के हाथों में गदा, तोमर और भुशुण्डि शोभा पा रहे थे। वे महावेगशाली महामनस्वी पार्षद नाना प्राकर के भयंकर अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न थे। उनका बल और वेग महान था। वे युद्ध प्रेमी महापार्षदगण कुमार का अभिषेक देखकर बड़े प्रसन्न हुए। वे अपने अंगों में छोटी-छोटी घंटियों से युक्त जालीदार वस्त्र पहने हुए थे। उनमें महान ओज भरा था। नरेश्वर! वे हर्ष में भरकर नृत्य कर रहे थे। ये तथा और भी बहुत से महापार्षदगण यशस्वी महात्मा कार्तिकेय की सेवा में उपस्थित हुए थे। देवताओं की आज्ञा पाकर देवलोक, अन्तरिक्ष लोक तथा भूलोक के वायुतुल्य वेगशाली शूरवीर पार्षद स्कन्द के अनुचर हुए थे। ऐसे-ऐसे सहस्रों, लाखों और अरबों पार्षद अभिषेक के पश्चात स्कन्द को चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये।[5]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 45 श्लोक 1-27
  2. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 45 श्लोक 28-49
  3. 3.0 3.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 45 श्लोक 50-85
  4. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 45 श्लोक 86-98
  5. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 45 श्लोक 99-115

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शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना | धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना | दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना | धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना | कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध | अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण | दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना | कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना | दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना | दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना | अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव | दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना | शल्य के वीरोचित उद्गार | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना | उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना | कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन | नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध | शल्य का पराक्रम | कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध | भीम के द्वारा शल्य की पराजय | भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध | दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध | दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध | युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध | मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध | अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध | दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध | शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध | पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध | भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय | युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय | भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध | सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय | मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन | पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा | भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार | दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना | धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध | सात्यकि द्वारा शाल्व का वध | सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय | दुर्योधन का पराक्रम | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम | कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध | उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम | शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय | अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा | अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार | अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार | अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज | सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध | भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध | अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध | भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त | सहदेव के द्वारा उलूक का वध | सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
ह्रदप्रवेश पर्व
बची हुई समस्त कौरव सेना का वध | संजय का क़ैद से छूटना | दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश | युयुत्सु का राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर में जाना
गदा पर्व
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