श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 248

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
दसवाँ अध्याय

आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान् ।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥21॥

आदित्यों में मैं विष्णु, ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य, मरुतों में मरीचि और नक्षत्रों में चन्द्रमा मैं हूँ।। 21।।

द्वादशसङ्ख्यासङ्ख्यातानाम् आदित्यानां द्वादशो य उत्कृष्टो विष्णुः नाम आदित्यः सः अहम्; ज्योतिषां जगति प्रकाशकानां यः अंशुमान् रविः आदित्यगणः सः अहम् मरुताम् उत्कृष्टो मरीचिः यः सः अहम् अस्मि, नक्षत्राणाम् अहं शशी। न इयं निर्धारणे षष्ठी, ‘भूतानाम् अस्मि चेतना’ इतिवत् नक्षत्राणां पतिः यः चन्द्रः सः अहम् अस्मि।। 21।।

बारह की गणना में गिने जाने वाले आदित्यों में बारहवाँ जो सबसे श्रेष्ठ विष्णु नामक आदित्य है, वह मैं हूँ, ज्योतियों में-जगत् के प्रकाशकों में जो किरणों वाला सूर्य आदित्यगण है, वह मैं हूँ; मरुतों में उत्कृष्ट जो मरीचि है, वह मैं हूँ, नक्षत्रों का (पति) चन्द्रमा मैं हूँ। यहाँ ‘नक्षत्राणाम्’ इस पदम में जो षष्ठी विभक्ति है, वह ‘निर्धारण’ में नहीं है, अपितु, ‘भूतों की चेतना मैं हूँ’ इस वाक्य की भाँति, इसका यह भाव है कि नक्षत्रों का स्वामी जो चन्द्रमा है, वह मैं हूँ।। 21।।

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासव: ।
इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥22॥

मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवताओं में इन्द्र हूँ, इन्द्रियों में मन हूँ और भूतों की चेतना हूँ।। 22।।

वेदानाम् ऋग्यजुः सामाथर्वणां य उत्कृष्टः सामवेदः सः अहम्, देवानाम् इन्द्रः अहम् अस्मि। एकादशा नाम् इन्द्रियाणां यद् उत्कृष्णटं मन इन्द्रियं तद् अहम् अस्मि। इयम् अपि नं निर्धारणे- भूतानां चेतनावतां या चेतना सा अहम् अस्मि।। 22।।

ऋक्, यजुः, साम और अथर्व-इन चारों वेदों में श्रेष्ठ जो सामवेद है, वह मैं हूँ। देवों में इन्द्र मैं हूँ। ग्यारह इन्द्रियों में श्रेष्ठ जो मन है, वह मैं हूँ। चेतनायुक्त भूतों की जो चेतना है, वह मैं हूँ। यह भी निर्धारण षष्ठी विभक्ति नहीं है।। 22।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
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अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
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