- शम एव यतीना हि क्षमिणां सिद्धिकारक:।[1]
सहिष्णुओं को शांति से ही सिद्धि मिलती है।
- शवमेव परं मन्ये शमात् क्षेमं भवेत्।[2]
मैं शांति को ही श्रेष्ठ मानता हूँ, शांति से ही कल्याण होगा।
- शांतिखड्ग करे यस्य किं करिष्यति दुर्जन:।[3]
जिसके हाथ में शांतिरूपी तलवार है दुर्जन उसका क्या कर लेगा?
- प्राग्विरुद्धै: शमं संधि: कथं वा क्रियते पुन:।[4]
जो पहले विरोधी रहे हों उनसे संधि या शांति कैसे की जा सकती है।
- अशांतस्य कुत: सुखम्।[5]
जिसके पास शांति नहीं उसको सुख नहीं।
- शांतिमिच्छन्नदीनात्मा सन्यच्छेदिंद्रियाणि।[6]
उदारचित मनुष्य शांति की इच्छा से इंद्रियों का सन्यम करें।
- ज्ञानेन यच्छेदात्मानं य इच्छेव्छांतिमात्मान:।[7]
जो आत्मा की शांति चाहे वह ज्ञान के द्वारा बुद्धि पर नियंत्रण रखे।
- स्वकृते का नु शांति:स्याच्छमाद् बहुविधादपि।[8]
स्वयं पाप किया हो तो शांति कैसी? कितनी ही शांति की बातें करो।
- शमस्तु परमो धर्म:।[9]
शांति परम धर्म है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदिपर्व महाभारत 42.9
- ↑ सभापर्व महाभारत 15.5
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 33.50
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 49.32
- ↑ भीष्मपर्व महाभारत 26.66
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 212.16
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 236.5
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 1.2
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 141.70
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