शल्य द्वारा कर्ण को श्रीकृष्ण और अर्जुन की शरण में जाने की सलाह

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 41वें अध्याय में संजय ने शल्य द्वारा कर्ण को कौए और हंस का उपाख्यान सुनाते हुए कृष्ण और अर्जुन की शरण में जाने की सलाह देने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

शल्य द्वारा कर्ण को अर्जुन और कृष्ण की शरण में जाने की सलाह देना

शल्य कहते हैं- कर्ण! विराट नगर में तो द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, भीष्म तथा अन्य कौरव वीर भी तुम्हारी रक्षा कर रहे थे। फिर उस समय तुमने अकेले सामने आये हुए अर्जुन का वध क्यों नहीं कर डाला? वहाँ तो किरीटधारी अर्जुन ने अलग-अलग और सब लोगों से एक साथ लड़कर भी तुम लोगों को उसी प्रकार परास्त कर दिया था, जैसे एक ही सिंह ने बहुत से सियारों को मार भगाया हो। कर्ण! उस समय तुम्हारा पराक्रम कहाँ था? सव्यसाची अर्जुन के द्वारा समरांगण में अपने भाई को मारा गया देखकर कौरव वीरों के समक्ष सबसे पहले तुम्हीं भागे थे। कर्ण! इसी प्रकार जब द्वैतवन में गन्धर्वों ने आक्रमण किया था, उस समय समस्त कौरवों को छोड़कर पहले तुमने ही पीठ दिखाई थी। कर्ण! वहाँ कुन्तीकुमार अर्जुन ने ही रणभूमि में चित्रसेन आदि गन्धर्वों को मार-पीटकर उन पर विजय पायी थी और स्त्रियों सहित दुर्योधन को उनकी कैद से छुड़ाया था।[1]

कर्ण! पुनः तुम्हारे गुरु परशुराम जी ने भी उस दिन राजसभा में अर्जुन और श्रीकृष्ण के पुरातन प्रभाव का वर्णन किया था। तुमने समस्त भूपालों के समीप द्रोणाचार्य और भीष्म की कही हुई बातें सदा सुनी हैं। वे दोनों श्रीकृष्ण और अर्जुन को अवध्य बताया करते थे। मैं कहाँ तक गिन-गिनकर बताऊँ कि किन-किन गुणों के कारण अर्जुन तुमसे बढ़े-चढ़े हैं। जैसे ब्राह्मण समस्त प्राणियों से श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार अर्जुन तुमसे श्रेष्ठ हैं। तुम इसी समय प्रधान रथ पर बैठे हुए वसुदेननन्दन श्रीकृष्ण तथा कुन्तीकुमार पाण्डुपुत्र अर्जुन को देखोगे। जैसे कौआ उत्तम बुद्धि का आश्रय लेकर चक्रांग की शरण में गया था, उसी प्रकार तुम भी वृष्णिनन्दन श्रीकृष्ण और पाण्डुपुत्र अर्जुन की शरण लो।

कर्ण! जब तुम युद्ध स्थल में पराक्रमी श्रीकृष्ण और अर्जुन को एक रथ पर बैठे देखोगे, तब ऐसी बातें नहीं बोल सकोगे। जब अर्जुन अपने सैंकड़ों बाणों द्वारा तुम्हारा घमंड चूर-चूर कर देंगे, तब तुम स्वयं ही देख लोगे कि तुममें और अर्जुन में कितना अन्तर है? जैसे जुगनू प्रकाशमान सूर्य और चन्द्रमा का तिरस्कार करे, उसी प्रकार तुम देवताओं, असुरों और मनुष्यों में भी विख्यात उन दोनों नरश्रेष्ठ वीर श्रीकृष्ण और अर्जुन का मूर्खतावश अपमान न करो। जैसे सूर्य और चन्द्रमा हैं, वैसे श्रीकृष्ण और अर्जुन हैं। वे दोनों अपने तेज से सर्वत्र विख्यात हैं; परंतु तुम तो मनुष्यों में जुगनू के ही समान हो। सूतपुत्र! तुम महात्मा पुरुषसिंह श्रीकृष्ण और अर्जुन को ऐसा जानकर उनका अपमान न करो। बढ़-बढ़कर बातें बनाना बंद करके चुपचाप बैठे रहो।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 41 श्लोक 59-77
  2. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 41 श्लोक 78-87

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