विट्ठलनाथ

विट्ठलनाथ

विट्ठलनाथ (जन्म- 1515 ई., वाराणसी; मृत्यु- 1585 ई., गोवर्धन, मथुरा) 'वल्लभ संप्रदाय' के प्रवर्तक और 'अष्टछाप' के संस्थापक थे। विट्ठलनाथ संगीत और चित्रकला में भी प्रवीण थे। वे भक्तिपथ में जाति-पांत को नहीं मानते थे। कहते हैं कि उन्होंने तानसेन, रसखान और अछूत मोहन को भी उपदेश दिया था।

जीवन परिचय

'वल्लभ संप्रदाय' के प्रवर्तक और 'अष्टछाप' के संस्थापक विट्ठलनाथ का जन्म वाराणसी के निकट चरवाट नामक गांव में पौष कृष्ण पक्ष नवमी को 1515 ई. हुआ था। विट्ठलनाथ पुष्टिमार्गी आचार्य वल्लभाचार्य के पुत्र थे। पिता के जीवन काल में इनकी अध्ययन के प्रति रुचि कम थी, किंतु बाद में इन्होंने गुरु माधव सरस्वती से वेद-वेदांत, शास्त्र पुराण आदि का गहन अध्ययन किया। बड़े भाई के असामयिक निधन के कारण ये संप्रदाय की गद्दी के स्वामी बने और उसे नया रूप देने में जुट गए। श्रीनाथ जी के मंदिर में सेवा की नई विधि 'वार्षिकोत्सव' आदि को इन्होंने ही आकर्षक बनाया।

'अष्टछाप' की स्थापना

विट्ठलनाथ ने अपने पिता के चार शिष्य- 'कुंभनदास', 'सूरदास', 'परमानंद दास' और 'कृष्णदास' तथा अपने चार शिष्य- 'चतुर्भुजदास', 'गोविन्दस्वामी', 'छीतस्वामी' और 'नंददास' को मिलाकर 'अष्टछाप' की स्थापना की। श्रीनाथ जी के मंदिर में सेवा-पूजा के समय इन्हीं आठ के पद गाए जाते थे। विट्ठलदास के प्रभाव से ही बादशाह अकबर ने गोकुल में वानर, मोर, गाय आदि के वध पर प्रतिबंध लगा दिया था। उसने फरमान द्वारा गोकुल में माफी की भूमि भी दी थी।

काव्य और गद्य

विट्ठलनाथ के शिष्यों में अनेक राजा-महाराजा भी सम्मिलित थे। इन्होंने जहाँ-जहाँ धार्मिक उपदेश दिए, वे स्थान बैठक कहलाए। ऐसी 28 बैठकों में से 16 ब्रज क्षेत्र में है। ब्रजभाषा काव्य और गद्य में इन्होंने लगभग 50 ग्रंथों की रचना की थी।

शरीर त्याग

विट्ठलनाथ ने गिरिराज (गोवर्धन) की एक गुफ़ा में प्रवेश करके 1585 ई. में शरीर त्याग दिया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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