रिष्यमूक परबत विख्याता।
इक दिन अनुज-सहित तहँ आए, सीतापति रघुनाथा।
कपि सुग्रीव बालि के भय तैं बसत हुतौ तहँ आइ।
त्रास मानि तिहिं पवन-पुत्र कौं दोनौ तुरत पठाइ।
को ये बीर फिरैं वन बिचरत, किहिं कारन ह्यौ आए।
सूरज प्रभु कैं निकट आइ कपि, हाथ जोरि सिर नाए॥68॥