यमलोक या यमपुरी का उल्लेख हिन्दू धर्म ग्रंथों में विशिष्ट रूप से किया गया है। इनके अनुसार किसी भी मानव की मृत्यु के पश्चात उसकी आत्मा यमलोक को प्रस्थान कर जाती है। यम देवता को यमलोक का स्वामी बताया गया है। इसी लोक में मानव को उसके द्वारा अपने सम्पूर्ण जीवन में किये गए कर्मों का फल प्रदान किया जाता है।
पुराण में विवरण
यमपुरी का उल्लेख कई ग्रंथों में मिलता है, जिसमें गरुड़ पुराणऔर कठोपनिषद आदि में इसका विस्तृत विवरण मिलता है। मृत्यु के बारह दिनों के बाद मानव की आत्मा यमलोक का सफर प्रारम्भ कर देती है। इन बारह दिनों में वह अपने पुत्रों और रिश्तेदारों द्वारा दान किये गए 'पिंड दान' के पिंड को खाकर ही शक्ति प्राप्त करती है। बारह दिन बाद सारे उत्तर कार्य समाप्त हो जाने पर आत्मा यमलोक के लिए यात्रा को निकलती है। यमलोक को 'मृत्युलोक'[1] से 86000 योजन दूरी पर माना गया है। एक योजन में क़रीब 4 कि.मी. होते हैं।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पृथ्वी
- ↑ यमराज का नगर यमलोक (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल.)। । अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2012।