मुष्टिक

'मुष्टिक' मथुरा के राजा कंस के राज्य में उसके प्रमुख मल्लों (पहलवानों) में से एक था। चाणूर, मुष्टिक, शल तथा तोषल आदि मल्लों और कुबलयापीड नाम के एक हाथी को विशेष प्रशिक्षण दिलाकर कृष्ण और बलराम को मार डालने के लिए रखा गया था, किंतु मल्ल युद्ध के समय बलराम ने मुष्टिक को मार डाला।

  • कंस ने मथुरा में श्री रंगेश्वर महादेवजी नामक तीर्थ स्थान पर एक रंगशाला का निर्माण करवाया था।
  • रंगशाला में चाणूर, मुष्टिक, शल तथा तोषल आदि पहलवान कृष्ण और बलराम से मल्ल युद्ध के लिए उपस्थित थे।
  • कृष्ण ने रंगशाला के द्वार पर खड़े कुबलयापीड हाथी का वध कर दिया और दोनों भाई रंगशाला में आ गए।
  • कंस के मुख्य पहलवानों चाणूर और मुष्टिक ने दोनों भाईयों को मल्ल युद्ध के लिए ललकारा।
  • नीति विचारक श्रीकृष्ण ने अपने समान आयु वाले मल्लों से लड़ने की बात कही। किन्तु चाणूर ने श्रीकृष्ण को और मुष्टिक ने बलराम को बड़े दर्प से, महाराज कंस का मनोरंजन करने के लिए ललकारा। श्रीकृष्ण-बलराम तो ऐसा चाहते ही थे। इस प्रकार मल्लयुद्ध आरम्भ हो गया।
  • श्रीकृष्ण ने चाणूर और बलराम ने मुष्टिक को पछाड़कर उनका वध कर दिया।

श्रीमद्भागवत महापुराण का उल्लेख

'श्रीमद्भागवत महापुराण'[1] के अनुसार- श्रीशुकदेवजी कहते हैं- "परीक्षित! इसी प्रकार मुष्टिक ने भी पहले बलरामजी को एक घूँसा मारा। इस पर बली बलरामजी ने उसे बड़े जोर से एक तमाचा जड़ दिया। तमाचा लगने से वह काँप उठा और आँधी से उखड़े हुए वृक्ष के समान अत्यन्त व्यथित और अन्त में प्राणहीन होकर खून उगलता हुआ पृथ्वी पर गिर पड़ा। हे राजन! इसके बाद योद्धाओं में श्रेष्ठ भगवान बलरामजी ने अपने सामने आते ही कूट नामक पहलवान को खेल-खेल में ही बायें हाथ के घूँसे से उपेक्षापूर्वक मार डाला। उसी समय भगवान श्रीकृष्ण ने पैर की ठोकर से शल का सिर धड़ से अलग कर दिया और तोशल को तिनके की तरह चीर कर दो टुकड़े कर दिया। इस प्रकार दोनों धराशायी हो गये।

जब चाणूर, मुष्टिक, कूट, शल और तोशल-ये पाँचों पहलवान मर चुके, तब जो बच रहे थे, वे अपने प्राण बचाने के लिये स्वयं वहाँ से भाग खड़े हुए। उनके भाग जाने पर भगवान श्रीकृष्ण और बलरामजी अपने समवयस्क ग्वाल-बालों को खींच-खींचकर उनके साथ भिड़ने और नाच-नाचकर भेरीध्वनि के साथ अपने नूपुरों की झनकार को मिलाकर मल्लक्रीडा-कुश्ती के खेल करने लगे।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दशम स्कन्ध, अध्याय 44, श्लोक 24-29

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