मुरली तौ अधरनि पर गाजति।
कैसैं बैठी दुहूँ करनि चढ़ि, अंगुरी रंध्रनि राजति।।
स्यामहिं मिलि हम सबनि दिखावति, नैकु नहीं मन लाजति।
नाद सवाद मोद सौं उपजत, मधुरे-मधुरे बाजति।।
कबहुँ मौन ह्वै रहति कबहुँ कछु कहति, रहति नहिं हाजति।
सूर स्याम वाकौ सुर साजत, वह उनहीं सौं भ्राजति।।1339।।