महाभारत वन पर्व अध्याय 85 श्लोक 1-21

पंचाशीतितम (85) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: पंचाशीतितम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद


गंगासागर, अयोध्या, चित्रकूट, प्रयाग आदि विभिन्न तीर्थों की महिमा का वर्णन और गंगा का माहात्म्य

पुलस्त्य जी कहते हैं- भीष्म! तदनन्तर प्रातःसंध्या के समय उत्तम संवेद्यतीर्थ में जाकर स्नान करने से मनुष्य विद्या लाभ करता है; इसमें संशय नहीं हैं। राजन्! पूर्वकाल में श्रीराम के प्रभाव से जो तीर्थ प्रकट हुआ, उसका नाम लौहित्यतीर्थ है। उसमें जाकर स्नान करने से मनुष्य को बहुत-सी सुवर्ण राशि प्राप्त होती है। करतोया में जाकर स्नान करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है। वह ब्रह्मा जी द्वारा की हुई व्यवस्था है। राजेन्द्र! वहाँ गंगासागर संगम में स्नान करने से दस अश्वमेध यज्ञों के फल की प्राप्ति होती है, ऐसा मनीषी पुरुष कहते हैं। राजन्! जो मानव गंगासागर संगम में गंगा के दूसरे पार पहुँचकर स्नान करता है और तीन रात वहाँ निवास करता है, वह सब पापों से छूट जाता है।

तदनन्तर सब पापों से छुड़ाने वाली वैतरणी की यात्रा करे। वहाँ विरजतीर्थ में जाकर स्नान करने से मनुष्य चन्द्रमा के समान प्रकाशित होता है। उसका पुण्यमय कुल संसार सागर से तर जाता है। वह अपने सब पापों का नाश कर देता है और सहस्र गोदान का फल प्राप्त करके अपने कुल को पवित्र कर देता है। शोण और ज्योतिरथ्या के संगम में स्नान करके जितेन्द्रिय एवं पवित्र पुरुष यदि देवताओं ओर पितरों का तर्पण करे तो वह अग्निष्टोम यज्ञ का फल पाता है। कुरुनन्दन! शोण और नर्मदा के उत्पत्ति स्थान वंशगुल्मतीर्थ में स्नान करके तीर्थयात्री अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है। नरेश्वर! कोसला (अयोध्या) में ऋषभतीर्थ में जाकर स्नानपूर्वक तीन रात उपवास करने वाला मानव वाजपेय यज्ञ का फल पाता है। इतना ही नहीं, वह सहस्र गोदान का फल पाता और अपने कुल का भी उद्धार कर देता है। कोसला नगरी (अयोध्या) में जाकर कालतीर्थ में स्नान करे, ऐसा करने से ग्यारह वृषभ-दान का फल मिलता है, इसमें संशय नहीं है। पुष्पवती में स्नान करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य सहस्र गोदान का फल पाता और अपने कुल को पवित्र कर देता है।

भरतकुलभूषण! तदनन्तर बदरिकातीर्थ में स्नान करके मनुष्य दीर्घायु पाता और स्वर्गलोक में जाता है। तत्पश्चात् चम्पा में जाकर भागीरथी में तर्पण करे और दण्ड नामक तीर्थ में जाकर सहस्र गोदान का फल प्राप्त करे। तदनन्तर पुण्यशोभिता पुण्यमयी लपेटिका में जाकर स्नान करे। ऐसा करने से तीर्थयात्री वाजपेय यज्ञ का फल पाता और सम्पूर्ण देवताओं द्वारा पूजित होता है। इसके बाद परशुरामसेवित महेन्द्र पर्वत पर जाकर वहाँ रामतीर्थ में स्नान करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।

कुरुश्रेष्ठ कुरुनन्दन! वहीं मतंग का केदार है, उसमें स्नान करने से मनुष्य को सहस्र गोदान का फल मिलता है। श्रीपर्वत पर जाकर वहाँ की नदी के तट पर स्नान करे। वहाँ भगवान् शंकर की पूजा करके मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। श्रीपर्वत पर देवी पार्वती के साथ महातेजस्वी महादेव जी बड़ी प्रसन्नता के साथ निवास करते हैं। देवताओं के साथ ब्रह्मा जी भी वहाँ रहते हैं। वहाँ देवकुण्ड में स्नान करके पवित्र हो जितात्मा पुरुष अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और परम सिद्धि लाभ करता है। पाड्य देश में देवपूजित ऋषभ पर्वत पर जाकर तीर्थयात्री वाजपेय यज्ञ का फल पाता और स्वर्गलोक में आनंदित होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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