सप्तम (7) अध्याय: मौसल पर्व
महाभारत: मौसल पर्व: सप्तम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- परंतप! अपने मामा वसुदेव जी के ऐसा कहने पर अर्जुन मन-ही-मन बहुत दु:खी हुए। उनका मुख मलिन हो गया। वे वसुदेव जी से इस प्रकार बोले- "मामा जी! वृष्णि वंश के प्रमुख वीर भगवान श्रीकृष्ण तथा अपने भाइयों से हीन हुई यह पृथ्वी मुझसे अब किसी तरह देखी नहीं जा सकेगी। राजा युधिष्ठिर, भीमसेन, पांडव सहदेव, नकुल, द्रौपदी तथा मैं- ये छ: व्यक्ति एक ही हृदय रखते हैं। (इनमें से कोई भी अब यहाँ नहीं रहना चाहेगा)। राजा युधिष्ठिर के भी परलोक-गमन का समय निश्चय ही आ गया है। कालों में श्रेष्ठ मामा जी! यह वही काल प्राप्त हुआ है, ऐसा समझें। शत्रुदमन! अब मैं वृष्णि वंश की स्त्रियों, बालकों और बूढ़ों को अपने साथ ले जाकर इन्द्रप्रस्थ पहुँचाऊँगा।" मामा से यों कहकर अर्जुन ने दारुक से कहा- "अब मैं वृष्णिवंशी वीरों के मन्त्रियों से शीघ्र मिलना चाहता हूँ।" ऐसा कहकर शुरवीर अर्जुन यादव महारथियों के लिये शोक करते हुए यादवों की सुधर्मा नामक सभा में प्रविष्ट हुए। वहाँ एक सिंहासन पर बैठे हुए अर्जुन के पास मन्त्री आदि समस्त प्रकृति वर्ग के लोग तथा वेदवेत्ता ब्राह्मण आये और उन्हें सब ओर से घेरकर पास ही बैठ गये। उन सबके मन में दीनता छा गयी थी। सभी किंकर्तव्यविमूढ़ एवं अचेत हो रहे थे। अर्जुन की दशा तो उनसे भी अधिक दयनीय थी। वे उन सभासदों से समयोचित वचन बोले- "मन्त्रियों! मैं वृष्णि और अन्धक वंश के लोगों को अपने साथ इन्द्रप्रस्थ ले जाऊँगा; क्योंकि समुद्र अब इस सारे नगर को डुबो देगा; अत: तुम लोग तरह-तरह के वाहन और रत्न लेकर तैयार हो जाओ। इन्द्रप्रस्थ में चलने पर ये श्रीकृष्ण-पौत्र वज्र तुम लोगों के राजा बनाये जायेंगे। आज के सातवें दिन निर्मल सूर्योदय होते ही हम सब लोग इस नगर से बाहर हो जायेंगे। इसलिये सब लोग शीघ्र तैयार हो जाओ, विलम्ब न करो।" अनायास ही महान कर्म करने वाले अर्जुन के इस प्रकार आज्ञा देने पर समस्त मन्त्रियों ने अपनी अभीष्ट-सिद्धि के लिये अत्यन्त उत्सुक होकर शीघ्र ही तैयारी आरम्भ कर दी। अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण के महल में ही उस रात को निवास किया। वे वहाँ पहुँचते ही सहसा महान शोक और मोह में डूब गये। सबेरा होते ही महातेजस्वी शूरनन्दन प्रतापी वसुदेव जी ने अपने चित्त को परमात्मा में लगाकर योग के द्वारा उत्तम गति प्राप्त की। फिर तो वसुदेव जी के महल में बड़ा भारी कोहराम मचा। रोती चिल्लाती हुई स्त्रियों का आर्तनाद बड़ा भयंकर प्रतीत होता था। उन सबके बाल खुले हुए थे। उन्होंने आभूषण और मालाएँ तोड़कर फेंक दी थीं और वे सारी स्त्रियाँ अपने हाथों से छाती पीटती हुई करुणाजनक विलाप कर रही थीं। युवतियों में श्रेष्ठ देवकी, भद्रा, रोहिणी तथा मदिरा- ये सब-की-सब अपने पति के साथ चिता पर आरूढ़ होने को उद्यत हो गयीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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