चतुस्त्रिंश (34) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: चतुस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
भगवान शिव ने कहा- 'देवताओं! मेरा ऐसा विचार है कि तुम्हारे सभी शत्रुओं का वध किया जाये, परंतु मैं अकेला ही उन सबको नहीं मार सकता; क्योंकि वे देवद्रोही दैत्य बड़े ही बलवान हैं। अतः तुम सब लोग एक साथ संघ बनाकर मेरे आधे तेज से पुष्ट हो युद्ध में उन शत्रुओं को जीत लो; क्योंकि जो संघटित होते हैं, वे महान बलशाली हो जाते हैं'। देवता बोले- 'प्रभो! युद्ध में हम लोगों का जितना भी तेज और बल है, उससे दूना उन दैत्यों का है, ऐसा हम मानते हैं; क्योंकि उनके तेज और बल को हमने देख लिया है'। भगवान शिव बोले- 'देवताओं! जो पापी तुम लोगों के अपराधी हैं, वे सब प्रकार से वध के ही योग्य हैं। मेरे तेज और बल के आधे भाग से युक्त हो तुम लोग समस्त शत्रुओं को मार डालो'। देवताओं ने कहा- 'महेश्वर! हम आपका आधा बल धारण नहीं कर सकते; अतः आप ही हम सब लोगों के आधे बल से युक्त हो शत्रु का वध कीजिये'। भगवान शिव बोले- 'देवगण! यदि मेरे बल को धारण करने में तुम्हारी सामर्थ्य नहीं है तो मैं ही तुम लोगों के आधे तेज से परिपुष्ट हो इन दैत्यों का वध करूँगा'। नृपश्रेष्ठ! तदनन्तर देवताओं ने देवेश्वर भगवान शिव से ‘तथास्तु' कह दिया और उन सबके तेज का आधा भाग लेकर वे अधिक तेजस्वी हो गये। वे देव बल के द्वारा उन सबकी अपेक्षा अधिक बलशाली हो गये। इसलिए उसी समय से उन भगवान शंकर का महादेव नाम विख्यात हो गया। तत्पश्चात महादेव जी ने कहा- ‘देवताओं! मैं धनुष-बाण धारण करके रथ पर बैठकर युद्ध स्थल में तुम्हारे उन शत्रुओं का वध करूँगा। अतः तुम लोग मेरे लिए रथ और धनुष की खोज करो, जिसके द्वारा आज इन दैत्यों को भूतल पर मार गिराऊँ'? देवता बोले- 'देवेश्वर! हम लोग तीनों लोकों के तेज की सारी मात्राओं को एकत्र करके आपके लिए परम तेजस्वी रथ का निर्माण करेंगे। विश्वकर्मा का बुद्धि पूर्वक बनाया हुआ वह रथ बहुत ही सुन्दर होगा। तदनन्तर उन देवसंघों ने रथ का निर्माण किया और विष्णु, चन्द्रमा तथा अग्नि- इन तीनों को उनका बाण बनाया। प्रजानाथ! उस बाण का श्रृंग (गाँठ) अग्नि हुए। उसका भल्ल (फल) चन्द्रमा हुए और उस श्रेष्ठ बाण के अग्रभाग में भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हुए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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