महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 32 श्लोक 1-21

द्वात्रिंश (32) अध्याय: आश्रमवासिक पर्व (पुत्रदर्शन पर्व)

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महाभारत: आश्रमवासिक पर्व: द्वात्रिंश अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद


व्यास जी के प्रभाव से कुरुक्षेत्र के युद्ध में मारे गये कौरव-पांडव वीरों का गंगा जी के जल से प्रकट होना


वैशम्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्‍तर जब रात होने को आयी, तब जो लोग वहाँ आये थे, वे सब सांयकालोचित नित्‍य-नियम पूर्ण करके भगवान व्‍यास के समीप गये। पांडवों सहित धर्मात्‍मा धृतराष्‍ट्र पवित्र एवं एकाग्रचित्त हो उन ऋषियों के साथ व्यास जी के निकट जा बैठे। कुरुकुल की सारी स्त्रियाँ एक साथ हो गांधारी के समीप बैठ गयीं तथा नगर और जनपद के निवासी भी अवस्था के अनुसार यथास्थान विराजमान हो गये। तत्पश्चात महातेजस्वी महामुनि व्यास जी ने भागीरथी के पवित्र जल में प्रवेश करके पांडव तथा कौरव पक्ष के सब लोगों का आवाहन किया। पांडवों तथा कौरवों के पक्ष में जो नाना देशों के निवासी महाभाग नरेश योद्धा बनकर आये थे, उन सब का व्यास जी ने आवाहन किया।

जनमेजय! तदनन्तर जल के भीतर से कौरवों और पांडवों की सेनाओं का पहले जैसा ही भयंकर शब्द प्रकट होने लगा। फिर तो भीष्म-द्रोण आदि समस्त राजा अपनी सेनाओं के साथ सहस्रों की संख्या में उस जल से बाहर निकलने लगे। पुत्रों और सैनिकों सहित विराट और द्रुपद पानी से बाहर आये। द्रौपदी के पाँचों पुत्र, अभिमन्यु तथा राक्षस घटोत्कच ये सभी जल से प्रकट हो गये। कर्ण, दुर्योधन, महारथी शकुनि, धृतराष्ट्र के पुत्र महाबली दुःशासन आदि, जरासन्ध कुमार सहदेव, भगदत्त, पराक्रमी जलसन्ध, भूरिश्रवा, शल, शल्य, भाइयों सहित वृषसेन, राजकुमार लक्ष्मण, धृष्टद्युम्न के पुत्र, शिखण्डी के सभी पुत्र, राजा बाह्लिक, सोमदत्त और चेकितान- ये तथा दूसरे बहुत-से क्षत्रिय वीर, जो संख्या में अधिक होने के कारण नाम लेकर नहीं बताये गये हैं, सभी देदीप्यमान शरीर धारण करके उस जल से प्रकट हुए। जिस वीर का जैसा वेष, जैसी ध्वजा और जैसा वाहन था, वह उसी से युक्त दिखायी दिया। वहाँ प्रकट हुए सभी नरेश दिव्य वस्त्र धारण किये हुए थे। सबके कानों में चमकीले कुण्डल शोभा पाते थे। उस समय वे वैर, अहंकार, क्रोध और मात्सर्य छोड़ चुके थे। गन्धर्व उनके गुण गाते और बन्दीजन स्तुति करते थे। उन सबने दिव्य माला और दिव्य वस्त्र धारण कर रखे थे और सभी अप्सराओं से घिरे हुए थे।

नरेश्वर! उस समय सत्यवतीनन्दन मुनिवर व्यास ने प्रसन्न होकर अपने तपोबल से धृतराष्ट्र को दिव्य नेत्र प्रदान किये। यशस्विनी गांधारी भी दिव्य ज्ञानबल से सम्पन्न हो गयी थीं। उन दोनों ने युद्ध में मारे गये अपने पुत्रों तथा अन्य सब सम्बन्धियों को देखा। वहाँ आये हुए सब लोग आश्चर्यचकित हो एकटक दृष्टि से उस अद्भुत, अचिन्त्य एवं अत्यन्त रोमांचकारी दृश्य को देख रहे थे। वह हर्षोत्फुल्ल नर-नारियों से भरा हुआ महान आश्चर्यजनक उत्सव कपड़े पर अंकित किये गये चित्र की भाँति दिखायी देता था। भरतश्रेष्ठ! राजा धृतराष्ट्र मुनिवर व्यास की कृपा से मिले हुए दिव्य नेत्रों द्वारा अपने समस्त पुत्रों और सम्बन्धियों को देखते हुए आनन्दमग्न हो गये।


इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिक पर्व के अन्तर्गत पुत्रदर्शन पर्व में भीष्म आदि का दर्शन विषयक बत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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