चतुरशीतितम (84) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: चतुरशीतितम अध्याय: श्लोक 18-34 का हिन्दी अनुवाद
तदनन्तर ययाति ने अनु से कहा- अनो! तुम बुढ़ापे के साथ मेरा दोष ले लो और मैं तुम्हारी जवानी के द्वारा एक हजार वर्ष तक सुख भोगूंगा। अनु बोले- पिता जी! बूढ़ा मनुष्य बच्चों की तरह असमय में भोजन करता है, अपवित्र रहता है तथा समय पर अग्निहोत्र नहीं करता, अत: ऐसी वृद्धावस्था को मैं नहीं लेना चाहता। ययाति ने कहा- अनो! तू मेरे हृदय से उत्तम होकर भी अपनी युवावस्था मुझे नहीं दे रहा है और बुढ़ापे के दोष बतला रहा है, अत: तू वृद्धावस्था के समस्त दोषों को प्राप्त करेगा और तेरी संतान जवान होते ही मर जायगी तथा तू भी बूढ़े-जैसा होकर अग्निहोत्र का त्याग कर देगा। तत्पश्रचात् ययाति ने पुरु से कहा- पूरो! तुम मेरे प्रिय पुत्र हो। गुणों में तुम श्रेष्ठ होओगे। तात! मुझे बुढ़ापे ने घेर लिया; सब अंगों में झुर्रियां पड़ गयीं और सिर के बाल सफेद हो गये। बुढ़ापे के ये सारे चिह्न मुझे एक ही साथ प्राप्त हुए हैं। कविपुत्र शुक्राचार्य के शाप से मेरी यह दशा हुई है; किंतु मैं जवानी के भोगों से अभी तृप्त नहीं हुआ हूँ। पूरो! तुम बुढ़ापे के साथ मेरे दोष को ले लो और मैं तुम्हारी युवावस्था लेकर उसके द्वारा कुछ काल तक विषयभोग करूंगा। एक हजार वर्ष पूरे होने पर मैं तुम्हें पुन: तुम्हारी जवानी दे दूंगा और बुढ़ापे के साथ अपना दोष ले लूंगा। वैशम्पायन जी कहते हैं- ययाति के ऐसा कहने पर पूरु ने अपने पिता से विनयपूर्वक कहा- ‘महाराज! आप मुझे जैसा आदेश दे रहे हैं, आपके उस वचन का मैं पालन करूंगा। गुरुजनों की आज्ञा पालन मनुष्यों के लिये पुण्य, स्वर्ग तथा आयु प्रदान करने वाला है। गुरु के ही प्रसाद से इन्द्र ने तीनों लोकों का शासन किया है। गुरु स्वरूप पिता की अनुमति प्राप्त करके मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओं को पा लेता है। राजन्! मैं बुढ़ापे के साथ अपना दोष ग्रहण कर लूंगा। आप मुझसे जवानी ले लें और इच्छानुसार विषयों का उपभोग करें। मैं वृद्धावस्था से आच्छादित हो आपकी आयु एवं रूप धारण करके रहूंगा और आपको जवानी देकर आप मेरे लिये जो आज्ञा देंगे, उसका पालन करूंगा’। ययाति बोले- 'वत्स! पूरो! मैं तुम पर प्रसन्न हूँ और प्रसन्न होकर तुम्हें यह वर देता हूं, तुम्हारे राज्य में सारी प्रजा समस्त कामनाओं से सम्पन्न होगी’। ऐसा कहकर महातपस्वी ययाति ने शुक्राचार्य का स्मरण किया और अपनी वृद्धावस्था महात्मा पुरु को देकर उनकी युवावस्था ले ली। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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